Monday, 26 December 2011

Anna Hazare Fast in Mumbai 27 December - 30 December 2011



रालेगण सिद्धि. कांग्रेस ने मंगलवार से शुरू हो रहे अनशन से कुछ घंटे पहले अन्ना हजारे की कई मांगों को खारिज करते हुए अपना रुख कड़ा कर दिया है। कांग्रेस के मुख्य सचेतक संदीप दीक्षित ने सीबीआई को लोकपाल और ग्रुप सी को लोकपाल के दायरे में लाने से एक बार फिर इनकार कर दिया है।  टीम अन्ना ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर अपनी प्रमुख मांगों को सामने रखा था। इन मांगों में टीम अन्ना ने कहा था कि लोकपाल की अपनी पुलिस हो, पूरी जांच सीबीआई के पास हो, ग्रुप सी, डी कर्मचारी इसके दायरे में हों और सीबीआई राजनीतिक नियंत्रण से मुक्त होनी चाहिए। 
 


"I request everyone, especially the youth to stick to non violence. Whatever happens, but please dont adopt violence. Youth are the real power of India." - Anna, before leaving for Mumbai from Ralegan Siddhi.

How to reach MMRDA by bus: Bus route to MMRDA Ground, BKC, closest bus stop to the ground
is ICICI Bank and Diamond Market

Bandra Terminus BT, IT -Income Tax, Bandra Kurla Complex BKC

303-Bandra Terminus to BKC (ICICI)
... 217- BT to BKC IT
304, 390, 310-Kurla st. to bkc (icici bank)
62-Mumbai Central to bkc icici
181-Antop Hill Extension
449ltd- Dharavi to BKC (icici bank)

AC buses
910 - BT to bkc icic
304 - BT to diamond market
310- Kurla st. to bkc

Friday, 23 December 2011

Anna Hazare 24 December News

Anna Hazare real name Kisan Baburao Hazare किसन बाबुराव हजारे was born on 15 June 1937 is a social activist from Ralegan Siddhi, a village in Parner taluka of Ahmednagar district, Maharashtra India. 



Jail Bharo Andolan - 30 December 2011 to 1-Jan 2012


Anna's "Jail Bharo" campaign to fight for passage of the Jan Lokpal Bill!
To express your willingness to go to jail for the Jan Lokpal bill.


जन लोकपाल विधेयक के लिए अन्नाजी ने "जेल भरो" आंदोलन का ऐलान किया है|

इस अभियान में हम आपको आमंत्रित करते हैं|


Jail Bharo Andolan - Register your Name 


जेल भरो अनादोलन  के लिए रजिस्टर करे


Team Anna has begun registration for Anna Hazare's jail bharo andolan to protest against government's lokpal bill, tweeted Kiran Bedi.
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Protest March from AIIMS to IIT 24 December 2011


Anna Hazare has called Protest March from AIIMS to IIT on 24th December 2011 at 5:00 PM until 8:00pm


This is time where our mother land urges her Son and Daughters to come on the street for protesting against Corrupt govt & it's DHOKHAPAL.
Please join this protest march.


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Demanding a Strong LokPal Bill Read About : 


Jan Lokpal Bill version 2.2 - English 

Jan Lokpal Bill version 2.2 - Hindi जन लोकपाल विधेयक संस्करण 2.2

Government Lokpal Bill Vs Jan Lokpal Bill: Comparative Chart


Jail Bharo Andolan - 30 December 2011 to 1-Jan 2012



Anna's "Jail Bharo" campaign to fight for passage of the Jan Lokpal Bill!
To express your willingness to go to jail for the Jan Lokpal bill.



जन लोकपाल विधेयक के लिए अन्नाजी ने "जेल भरो" आंदोलन का ऐलान किया है|इस अभियान में हम आपको आमंत्रित करते हैं|


Jail Bharo Andolan - Register your Name 


जेल भरो अनादोलन  के लिए रजिस्टर करे

Team Anna has begun registration for Anna Hazare's jail bharo andolan to protest against government's lokpal bill, tweeted Kiran Bedi.

Protest March from AIIMS to IIT 24 December 2011

Anna Hazare has called Protest March from AIIMS to IIT on 24th December 2011 at 5:00 PM until 8:00pm


This is time where our mother land urges her Son and Daughters to come on the street for protesting against Corrupt govt & it's DHOKHAPAL.
Please join this protest march.




Government Lokpal Bill - Bill सरकारी लोकपाल बिल जन विरोधी है


ये क़ानून जन विरोधी  है। इस क़ानून का मकसद केवल लोकपाल नामक संस्था बनाकरजो कि सरकारी शिकंजे में रहेगीइस देश के लोगों का दमन करना है। इस क़ानून का हम पुरज़ोर विरोध करते हैं और मांग करते हैं कि ये क़ानून वापिस लिया जाए और खारिज किया जाए।

·         इस क़ानून के दायरे में इस देश के सारे मंदिरमिस्ज़दगुरूद्वारेचर्चमहिला मंडलधार्मिक संस्थारामलीला कमेटीदुर्गा पूजामदरसेक्रिकेट क्लबस्पोर्ट क्लबयुवा क्लबमजदूर किसान संगठनआंदोलनप्रेस क्लबसारे अस्पताल,सारी डिस्पेंसरीआर.डब्ल्यू.ए क्लबरोटरी क्लबलाइंस क्लब इत्यादि आएंगे। इन सभी संस्थाओं में काम करने वाले सभी पंडितमौलवीपफादरसिस्टरबिशप,ग्रंथीअध्यापकडॉक्टर इत्यादि को सरकारी अफसर घोषित किया गया है। इसके दायरे में केवल 10 प्रतिशत नेता और प्रतिशत सरकारी अधिकारी आएंगे। 90प्रतिशत नेता, 95 प्रतिशत  अधिकारीसभी कंपनियां और सभी राजनैतिक पार्टियां इसके दायरे के बाहर होंगी।

·         पिछले महीने से सरकार और कांग्रेस प्रवक्ताऔपचारिक और अनौपचारिक तरीके से टीम अन्ना और इस देश के लोगों द्वारा ड्राफ्रट किए जन लोकपाल पर जो-जो आरोप लगा रहे हैंवो आरोप जनलोकपाल पर तो सरासर झूठे थेलेकिन सरकारी लोकपाल पर ये सारे आरोप सच साबित होते हैं। मसलन ये बिल जन विरोधी हैभ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला हैअव्यवहारिक हैख़तरनाक है इत्यादि।

·         लोकपाल पूरी तरह से सरकार के हाथ की कठपुतली होगाजिसको इस्तेमाल करके सरकार सभी संस्थानों पर शिकंजा कस सकती है।
लोकपाल का चयन पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में होगा। पांच सदस्यीय चयन समिति में तीन सरकार के अपने होंगे (चयन समिति में प्रधनमंत्रीनेता विपक्ष,स्पीकरचीफ जस्टिस और सरकार द्वारा चयनित एक वकील)। खोज समिति और चयन प्रक्रिया के बारे में बिल पूरी तरह से शांत है। लोकपाल के सदस्यों को हटाना भी सरकार के नियंत्रण में होगा। सरकार अथवा 100 सांसदो की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट जांच करेगा और जांच के दौरान सरकार उस सदस्य को निलंबित कर सकती है। लोकपाल के वरिष्ठ अधिकारीयों का चयन सरकार द्वारा बताए गए नामों में से होगा।

·         ये क़ानून आने के बाद सीबीआई पूरी तरह से निष्क्रिय हो जाएगी। आज सीबीआई पूछताछजांचअभियोजन खुद करती है। अब सीबीआई से पूछताछ और अभियोजन को छीना जा रहा हैतो सीबीआई के टुकड़े-टुकड़े करके निष्क्रिय बनाया जा रहा है। सीबीआई निदेशक का चयन राजनैतिक नियंत्रण में कर दिया गया है। अब इसका चयन प्रधनमंत्रीनेता विपक्ष और चीफ जस्टिस करेंगे। जाहिर है प्रधनमंत्री और नेता विपक्ष कमज़ोर निदेशक की ही सिफारिश करेंगे। सख्त निदेशक आ गया तो उन्हीं के खिलाफ जांच शुरू कर देगा। सीबीआई पर लोकपाल का निरीक्षण का अधिकार होगा- ऐसा बताया जा रहा है। यह बिल्कुल भ्रामक है और पूरे देश के साथ धोखा किया जा रहा है। लोकपाल का सीबीआई के ऊपर किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं होगा। सीबीआई पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में रहेगी। लोकपाल केवल पोस्टमेन की तरह सीबीआई को शिकायत भेजने का काम करेगा।

·         ग्रुप `सी´ और `डी´ कर्मचारी पूरी तरह से लोकपाल के दायरे के बाहर हैं। ग्रुप `सी´और `डी´ कर्मचारियों के मामले में लोकपाल केवल पोस्ट ऑफिस की तरह सारी शिकायतें सीवीसी को भेजेगा। सीवीसी पर लोकपाल का किसी भी तरह से नियंत्रण नहीं होगा। नियंत्रण के नाम पर सीवीसी लोकपाल को केवल त्रौमासिक रिपोर्ट भेजेगा। सीवीसी के 232 कर्मचारी 57 लाख ग्रुप `सी और डी´ के भ्रष्टाचार की तहकीकात कैसे करेंगेयह एक बहुत बड़ा प्रश्न हैइस बिल की एक बड़ी विडंबना यह है कि ग्रुप `सी´ और `डी´ के मामलों की जांच भी सीबीआई करेगी और अपनी रिपोर्ट सीवीसी को भेजेगी। लेकिन जांच का अभियोजन डालने की ताकत सीबीआई को नहीं होगी। ग्रुप `सी´ और `डी´ के अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन कौन करेगा इस पर बिल मौन है।

·         आज़ादी के बाद पहली बार भ्रष्टाचार के मुकदमें में भ्रष्टाचारी अफसरों और नेताओं को मुफ्त में वकील सरकार मुहैया कराएगी और उन्हें हर तरह की क़ानूनी सलाह देगी।

·         शिकायतकर्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए आरोपी अधिकारी और नेता को सरकार मुफ्त में वकील मुहैया कराएगी। भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ तो शिकायत होने के बाद जांच होगी और शिकायत के लगभग दो साल बाद मुकदमा होगालेकिन शिकायतकर्ता के खिलाफ मुकदमा शिकायत करने के अगले दिन ही जारी हो जाएगा। 

·         भ्रष्ट अधिकारियों को निकालने की ताकत लोकपाल को नहीं बल्कि उसी विभाग के मंत्री को होगी। आज तक जो मंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच के आदेश नहीं देते थेक्योंकि अधिकतर मामलों में वो भी मिले होते थेक्या वो भ्रष्ट अधिकारियों को नौकरी से निकालेंगे

·         अगर लोकपाल के कर्मचारी भ्रष्ट हो गए तो क्या होगासरकारी बिल कहता है कि लोकपाल खुद ऐसे मामलों का जांच करेगा। प्रश्न उठता है कि क्या लोकपाल खुद अपने ही कर्मचारियों के खिलाफ एक्शन लेगाजन लोकपाल में सुझाव दिया गया था कि लोकपाल के कर्मचारियों की शिकायत के लिए एक स्वतंत्र शिकायत प्राधिकरण बनाया जाए। सरकार ने इस नामंजूर कर दिया है।

·         हमने यह भी कहा था कि लोकपाल की कार्यप्रणाली पूरी तरह पारदर्शी हो। इसके लिए हमने कहा था कि हर मामले की जांच पूरी होने के बाद उससे संबंधित सभी रिकॉर्ड वेबसाइट पर डालें जाएं। सरकार ने यह मांग भी ठुकरा दी है। इससे साफ ज़ाहिर है कि सरकारी लोकपाल पूरी तरह भ्रष्टाचार का अड्डा बन जाएगा।

·         भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को संरक्षण देने की बात इस बिल में कहीं नहीं की गई है।

·         कार्पोरेट करप्शन पर जन लोकपाल में ढेरों सुझाव दिए गए थे। उन सबको नामंजूर कर दिया गया है। मसलन-
1. 
हमने मांग की थी कि यदि कोई कंपनी नियम-क़ानून के खिलाफ जाकर सरकार से कोई फ़ायदा लेती है तो उसे भ्रष्टाचार घोषित किया जाए। सरकार ने यह बात नहीं मानी है।
2. 
भ्रष्टाचार के आरोपी पाई जाने वाली कंपनी से जुर्माने के रूप में उस रकम का पांच गुना वसूला जाएजितना उसने सरकार को नुकसान पहुंचायायह बात भी नहीं मानी गई है।
3. 
भ्रष्टाचार में लिप्त पाई गई कंपनी और उसके प्रमोटर्स द्वारा बनाई गई अन्य कंपनियों को भी भविष्य में कोई सरकारी ठेका लेने से ब्लैकलिस्ट किया जाए। यह बात भी सरकार ने नहीं मानी।

·         किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में स्वयं संज्ञान लेने का अधिकार लोकपाल को नहीं होगा। 

·         एक अध्ययन के मुताबिक भ्रष्टाचार के मामलों को निपटाने में हाईकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट में 25 साल लगते हैं। हमने मांग की थी कि हाईकोर्ट में स्पेशल बैंच बनाए जाए ताकि छ: महीनों में अपीलों का निपटारा हो सके। सरकार ने यह बात भी नहीं मानी।

·         सीआरपीसी में पेचीदगी की वजह से ट्रायल व अपील में काफी वक्त लग जाता है हमने इसके कुछ प्रावधानों में संशोधन सुझाया था जिसे सरकार ने नहीं माना है।

·         केंद्र में तो लोकपाल सीबीआई से जांच करा लेगालेकिन राज्यों में लोकायुक्त किससे जांच कराएगाइस बारे में बिल खामोश है। अत: लोकायुक्त को जांच का काम राज्य की पुलिस से ही करवाना पडे़गा।

Sunday, 11 December 2011

Anna Hazare 12 December 2012

Anna Hazare 12 December 2012

Anna Hazare  on 11th December made a debate on Jan LokPal Bill . In this debate team anna members ( Arvind Kejriwal , Shanti Bhushan , Prashant Bhushan , Kiran Bedi  , Manish Sisodia , Sanjay Singh and Kumar Vishwas ) invited members of drafting committee are invited for a open talk on the matters of Jan Lok Pal Bill . This was organised on Jantar Mantar Delhi .  From BJP ( Bharty Janta Party ) - Arun Jately , CPM - AP Bradan , MKPA - Virnda Karat ,  JDU Mr.Sharad Yadav have joined this.

The Government's handling of the formation of the draft committee, involving the civil society in preparation of the draft Lokpal bill, was criticised by various political parties including BJP, BJD, TDP, AIADMK, CPI-M, RJD, JD(U) and Samajwadi Party.

Read About :

Jan Lokpal Bill version 2.2 - English 

Government Lokpal Bill Vs Jan Lokpal Bill: Comparative Chart

एक दिन के सांकेतिक अनशन के बीच जंतर-मंतर स्थित अन्‍ना के मंच से लोकपाल पर खुली बहस में भाजपा नेता अरुण जेटली और सीपीआई नेता ए बी बर्द्धन ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की वकालत की। वहीं माकपा नेता वृंदा करात ने निजी कंपनियों को भी लोकपाल के दायरे में लाए जाने की मांग की। जद (यू) नेता शरद यादव ने कहा कि संसद में लोकपाल पर पूरी बहस होनी जरूरी है। शरद यादव ने लोकपाल पर पूरी बहस के लिए संसद के मौजूदा सत्र का कार्यकाल बढ़ाने या विशेष सत्र का बुलाने की मांग की है। हालांकि केंद्रीय मंत्री नारायण सामी ने कहा है कि संसद का सत्र बढ़ाए जाने को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है। वहीं केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि संसद का सत्र बढ़ाना संभव नहीं है।

सपा नेता राम गोपाल यादव ने अन्‍ना की अधिकतर मांगों पर सहमति जताई। पीएम को लोकपाल के दायरे में लाने पर पांच राजनीतिक दल राजी हुए। हालांकि बर्द्धन और राम गोपाल यादव ने टीम अन्‍ना से हर एक मुद्दे पर जिद छोड़ने की भी अपील की। इन नेताओं ने कहा कि टीम अन्‍ना की ओर से तैयार किया गया ड्राफ्ट हू-ब-हू कानून नहीं बन सकता है। अकाली नेता सुखदेव सिंह ढींढसा और टीडीपी नेता येरन नायडू ने भी मंच से अपनी-अपनी बातें रखीं। टीम अन्‍ना ने कांग्रेस को भी इस बहस में शामिल होने का न्‍यौता दिया था लेकिन कांग्रेस ने मना कर दिया।

जंतर-मंतर के मंच पर अन्‍ना के साथ चार और लोग अनशन पर बैठे थे। इनमें अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, कुमार विश्‍वास और संजय सिंह शामिल हैं।

अरविंद केजरीवाल ने  कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाने पर लिया (विस्‍तार से पढ़ने के लिए रिलेटेड लिंक पर क्लिक करें)।  टीम अन्‍ना की सदस्‍य किरण बेदी के अलावा शांति भूषण, प्रशांत भूषण, शमून काजमी और संजय सिंह और मेधा पाटेकर ने भी मंच से लोगों को संबोधित किया।
अन्‍ना हजारे ने देशवासियों से अनशन की अपील की है। उनकी अपील पर दिल्ली से लेकर मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, लखनऊ, चंडीगढ़, हैदराबाद, भोपाल, पुणे, अहमदाबाद, बैंगलोर समेत और कई शहरों में अन्ना समर्थकों ने धरना दिया।

अन्‍ना हजारे ने सरकार पर देश को धोखा देने का आरोप लगाया और कहा कि अगर 22 दिसंबर तक उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे 27 दिसंबर से आंदोलन करेंगे। उन्‍होंने कहा कि उनका आंदोलन लोकसभा चुनाव तक इसे जारी रखेंगे। सरकार के लोकपाल विधेयक के विरोध में अन्ना ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा, ‘पूरे देश को धोखा दिया गया है। हमें लगता है कि इसके पीछे राहुल गांधी का हाथ है।’  उन्‍होंने कहा कि एक दिन झोपड़ी में रह कर राहुल प्रधानमंत्री नहीं बन सकते।

Jan Lokpal Bill version 2.2 - Hindi जन लोकपाल विधेयक संस्करण 2.2

Anna Hazare Jantar Mantar 11 December 2011


Anna Hazare real name Kisan Baburao Hazare किसन बाबुराव हजारे was born on 15 June 1937 is a social activist from Ralegan Siddhi, a village in Parner taluka of Ahmednagar district, Maharashtra India.

Read About :

Jan Lokpal Bill version 2.2 - English 

Jan Lokpal Bill version 2.2 - Hindi जन लोकपाल विधेयक संस्करण 2.2

Government Lokpal Bill Vs Jan Lokpal Bill: Comparative Chart


मजबूत लोकपाल की मांग पर अड़े अन्ना हजारे का एक दिन का सांकेतिक अनशन जारी है। जंतर-मंतर स्थित अन्‍ना हजारे के मंच से लोकपाल पर खुली बहस शुरू हो गई है। अरुण जेटली, शरद यादव, ए बी बर्धन, वृंदा करात, राम गोपाल यादव, सुखदेव सिंह ढींढसा मंच पर मौजूद हैं। इस बहस में राजनीतिक नेताओं को लोकपाल पर जनता के सामने अपना पक्ष रखने और लोगों को उनसे सवाल करने का मौका मिलेगा। टीम अन्‍ना ने कांग्रेस को भी इस बहस में शामिल होने का न्‍यौता दिया था लेकिन कांग्रेस ने मना कर दिया।
जंतर-मंतर स्थित मंच पर पहुंचने के बाद अन्‍ना ने सबसे पहले हाथ हिलाकर अपने समर्थकों का अभिवादन किया और 'भारत माता की जय' के नारे लगाए। जंतर-मंतर के मंच पर अन्‍ना के साथ चार और लोग अनशन पर बैठे हैं। इनमें अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, कुमार विश्‍वास और संजय सिंह शामिल हैं। अरविंद केजरीवाल ने  कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाने पर लिया (विस्‍तार से पढ़ने के लिए रिलेटेड लिंक पर क्लिक करें)।  टीम अन्‍ना की सदस्‍य किरण बेदी के अलावा शांति भूषण, प्रशांत भूषण, शमून काजमी और संजय सिंह और मेधा पाटेकर ने भी मंच से लोगों को संबोधित किया।
अन्‍ना हजारे ने देशवासियों से अनशन की अपील की है। उनकी अपील पर दिल्ली से लेकर मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, लखनऊ, चंडीगढ़, हैदराबाद, भोपाल, पुणे, अहमदाबाद, बैंगलोर समेत और कई शहरों में अन्ना समर्थकों का धरना जारी है। मुंबई में टैक्सीवालों ने अन्ना के समर्थन में उतरने का ऐलान किया है।

Government Lokpal Bill Vs Jan Lokpal Bill - English

Issue
Our view
Government’s view
Comments
Prime Minister Lokpal should have power to investigate allegations of corruption against PM. Special safeguards provided against frivolous and mischievous complaints PM kept out of Lokpal’s purview. As of today, corruption by PM can be investigated under Prevention of Corruption Act. Government wants investigations to be done by CBI, which comes directly under him, rather than independent Lokpal
Judiciary Lokpal should have powers to investigate allegation of corruption against judiciary. Special safeguards provided against frivolous and mischievous complaints Judiciary kept out of Lokpal purview. Government wants this to be included in Judicial Accountability Bill (JAB). Under JAB, permission to enquire against a judge will be given by a three member committee (two judges from the same court and retd Chief justice of the same court). There are many such flaws in JAB. We have no objections to judiciary being included in JAB if a strong and effective JAB were considered and it were enacted simultaneously.
MPs Lokpal should be able to investigate allegations that any MP had taken bribe to vote or speak in Parliament. Government has excluded this from Lokpal’s purview. Taking bribe to vote or speak in Parliament strikes at the foundations of our democracy. Government’s refusal to bring it under Lokpal scrutiny virtually gives a license to MPs to take bribes with impunity.
Grievance redressal Violation of citizen’s charter (if an officer does not do a citizen’s work in prescribed time) by an officer should be penalized and should be deemed to be corruption. No penalties proposed. So, this will remain only on paper. Government had agreed to our demand in the Joint committee meeting on 23rd May. It is unfortunate they have gone back on this decision.
CBI Anti-corruption branch of CBI should be merged into Lokpal. Government wants to retain its hold over CBI. CBI is misused by governments. Recently, govt has taken CBI out of RTI, thus further increasing the scope for corruption in CBI. CBI will remain corrupt till it remains under government’s control
Selection of Lokpal members 1. Broad based selection committee with 2 politicians, four judges and two independent constitutional authorities.  2. An independent search committee consisting of retd constitutional authorities to prepare first list.
3. A detailed transparent and participatory selection process.
1. With five out of ten members from ruling establishment and six politicians in selection committee, government has ensured that only weak, dishonest and pliable people would be selected.  2. Search committee to be selected by selection committee, thus making them a pawn of selection committee
3. No selection process provided. It will completely depend on selection committee
Government’s proposal ensures that the government will be able to appoint its own people as Lokpal members and Chairperson. Interestingly, they had agreed to the selection committee proposed by us in the meeting held on 7th May. There was also a broad consensus on selection process. However, there was a disagreement on composition of search committee. We are surprised that they have gone back on the decision.
Who will Lokpal be accountable to? To the people. A citizen can make a complaint to Supreme Court and seek removal. To the Government. Only government can seek removal of Lokpal With selection and removal of Lokpal in government’s control, it would virtually be a puppet in government’s hands, against whose seniormost functionaries it is supposed to investigate, thus causing serious conflict of interest.
Integrity of Lokpal staff Complaint against Lokpal staff will be heard by an independent authority Lokpal itself will investigate complaints against its own staff, thus creating serious conflicts of interest Government’s proposal creates a Lokpal, which is accountable either to itself or to the government. We have suggested giving these controls in the hands of the citizens.
Method of enquiry Method would be the same as provided in CrPC like in any other criminal case. After preliminary enquiry, an FIR will be registered. After investigations, case will be presented before a court, where the trial will take place CrPC being amended. Special protection being provided to the accused. After preliminary enquiry, all evidence will be provided to the accused and he shall be heard as to why an FIR should not be regd against him. After completion of investigations, again all evidence will be provided to him and he will be given a hearing to explain why a case should not be filed against him in the court. During investigations, if investigations are to be started against any new persons, they would also be presented with all evidence against them and heard. Investigation process provided by the government would severely compromise all investigations. If evidence were made available to the accused at various stages of investigations, in addition to compromising the investigations, it would also reveal the identity of whistleblowers thus compromising their security. Such a process is unheard of in criminal jurisprudence anywhere in the world. Such process would kill almost every case.
Lower bureaucracy All those defined as public servants in Prevention of Corruption Act would be covered. This includes lower bureaucracy. Only Group A officers will be covered. One fails to understand government’s stiff resistance against bringing lower bureaucracy under Lokpal’s ambit. This appears to be an excuse to retain control over CBI because if all public servants are brought under Lokpal’s jurisdiction, government would have no excuse to keep CBI.
Lokayukta The same bill should provide for Lokpal at centre and Lokayuktas in states Only Lokpal at the centre would be created through this Bill. According to Mr Pranab Mukherjee, some of the CMs have objected to providing Lokayuktas through the same Bill. He was reminded that state Information Commissions were also set up under RTI Act through one Act only.
Whistleblower protection Lokpal will be required to provide protection to whistleblowers, witnesses and victims of corruption No mention in this law. According to govt, protection for whistleblowers is being provided through a separate law. But that law is so bad that it has been badly trashed by standing committee of Parliament last month. The committee was headed by Ms Jayanthi Natrajan. In the Jt committee meeting held on 23rd May, it was agreed that Lokpal would be given the duty of providing protection to whistleblowers under the other law and that law would also be discussed and improved in joint committee only. However, it did not happen.
Special benches in HC High Courts will set up special benches to hear appeals in corruption cases to fast track them No such provision. One study shows that it takes 25 years at appellate stage in corruption cases. This ought to be addressed.
CrPC On the basis of past experience on why anti-corruption cases take a long time in courts and why do our agencies lose them, some amendments to CrPC have been suggested to prevent frequent stay orders. Not included
Dismissal of corrupt government servant After completion of investigations, in addition to filing a case in a court for prosecution, a bench of Lokpal will hold open hearings and decide whether to remove the government servant from job. The minister will decide whether to remove a corrupt officer or not. Often, they are beneficiaries of corruption, especially when senior officer are involved. Experience shows that rather than removing corrupt people, ministers have rewarded them. Power of removing corrupt people from jobs should be given to independent Lokpal rather than this being decided by the minister in the same department.
Punishment for corruption 1. Maximum punishment is ten years  2. Higher punishment if rank of accused is higher
3. Higher fines if accused are business entities
4. If successfully convicted, a business entity should be blacklisted from future contracts.
None of these accepted. Only maximum punishment raised to 10 years.
Financial independence Lokpal 11 members collectively will decide how much budget do they need Finance ministry will decide the quantum of budget This seriously compromises with the financial independence of Lokpal
Prevent further loss Lokpal will have a duty to take steps to prevent corruption in any ongoing activity, if brought to his notice. If need be, Lokpal will obtain orders from High Court. No such duties and powers of Lokpal 2G is believed to have come to knowledge while the process was going on. Shouldn’t some agency have a duty to take steps to stop further corruption rather than just punish people later?
Tap phones Lokpal bench will grant permission to do so Home Secretary would grant permission. Home Secretary is under the control of precisely those who would be under scanner. It would kill investigations.
Delegation of powers Lokpal members will only hear cases against senior officers and politicians or cases involving huge amounts. Rest of the work will be done by officers working under Lokpal All work will be done by 11 members of Lokpal. Practically no delegation. This is a sure way to kill Lokpal. The members will not be able to handle all cases. Within no time, they would be overwhelmed.
NGOs Only government funded NGOs covered All NGOs, big or small, are covered. A method to arm twist NGOs
False, Frivolous and vexatious complaints No imprisonment. Only fines on complainants. Lokpal would decide whether a complaint is frivolous or vexatious or false. Two to five years of imprisonment and fine. The accused can file complaint against complainant in a court. Interestingly, prosecutor and all expenses of this case will be provided by the government to the accused. The complainant will also have to pay a compensation to the accused. This will give a handle to every accused to browbeat complainants. Often corrupt people are rich. They will file cases against complainants and no one will dare file any complaint. Interestingly, minimum punishment for corruption is six months but for filing false complaint is two years.

Government Lokpal Bill Vs Jan Lokpal Bill: Comparative Chart

Rather than gunning for the corrupt and corruption, government’s Lokpal seems to be gunning
for those who complain against corruption.


How will Government’s Lokpal work?
Suppose some citizen files a complaint to Lokpal against some corrupt
government servant.

Before the investigations actually start, the government servant can file a cross complaint against
the citizen straight to the special court, without any preliminary enquiry by any agency, that the complaint
is false or frivolous. The government will provide free advocate to the government servant to file this case.
The citizen will have to defend himself on his own!

Then there is stiffer punishment for the complainant than the corrupt government servant.
If the Special Court concludes that the complaint is frivolous or false, the citizen faces a minimum
of two years of punishment. But if the corruption charges against government servant are proved,
there is a minimum of six months of punishment for the corrupt government servant!

Government’s Lokpal will have jurisdiction over all NGOs in the country but it will have jurisdiction
over less then o.5% of all government employees.

Government argued that the Lokpal would get overwhelmed with too many cases if all public servants
were brought under its ambit. So, government has restricted its jurisdiction only to 65,000 Group A officers.
Also, state employees will not be covered by Lokpal. There are 4 million central government employees
and 8 million state government employees.

In sharp contrast, all NGOs are covered under government’s Lokpal, small or big, whether in state or centre.
Even unregistered groups of people in remote villages are covered under the ambit of Lokpal.
So, in a remote village, if a group of youngsters detect corruption in panchayat works using RTI,
the youngsters can be hauled up by Lokpal but Lokpal would not have jurisdiction over Sarpanch,
BDO or their corruption.

Whereas Lokpal would not have jurisdiction over Delhi government officials, it would have jurisdiction over all RWAs in Delhi.
All small neighborhood groups who raise donations to do Ramlila or Durga Puja would be under Lokpal’s scanner.

Lokpal could haul up activists from any of the farmers, labour, anti-corruption, land, tribal or any other
movements. All the movements – whether registered or not, are under the jurisdiction of Lokpal.

There are 4.3 lakh registered NGOs. But there would be several million unregistered groups across the country.
Lokpal would have jurisdiction over all of them.

No one can dispute the fact that corruption in NGOs needs to be addressed. But how can you leave most
public servants out of Lokpal’s purview but bring NGOs upto village level within its purview?
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Accountability of the Lokpal
* Jan Lokpal :
Any Citizen can go and complaint to Supreme Court to remove a Lokpal if the Lokpal is not found to be
accountable in his/her actions.

* Government Lokpal :
Only Government has the power to remove a Lokpal.

So according to government’s draft, if government appoints a corrupt person as the Lokpal, then people have
no way of seeking the removal of such a Lokpal. But in case of Jan Lokpal, I or you can go to the
court and demand that the Lokpal be removed if we are able to provide justification for that removal.

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Corruption allegations against Lokpal Members
* Jan Lokpal :
Complaints of corruption against Lokpal members will be heard by an independent authority.

* Government Lokpal :
Lokpal itself will hear complaints of corruption against its members!

Which is more accountable? Lokpal hearing complaints against its own members? Or an independent
authority acting on these complaints?

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Probe corruption allegations against MPs in Parliament
* Jan Lokpal :
Lokpal will have the power to probe into allegations of corruption by Members in Parliament
like MPs taking bribe to vote! (Remember the Cash for Votes Scandal? )

* Government Lokpal :
Lokpal will not have any right to probe into allegations of corruption by MPs in the Parliament!
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Complaints against Government Officers, Public Servants
* Jan Lokpal :
Lokpal can act on complaints against ANY government officer.

* Government Lokpal :
Lokpal can act on complaints against only “Group A” level government officers.

There are around 80 lakh state government officials and 40 lakh central government officials in the country.
Of which only 65000 are Group A level officers. So according to government’s draft Lokpal or no Lokpal it makes no difference to over 99.995% of the government officers! The fact is that it is these officers below Group A level who actually cause problems to the common man. If common man cannot complain to Lokpal about problems like corruption in the Public Distribution System, corruption in his local RTO, corruption in rural employment scemes etc, then what is the use of such a Lokpal?
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Action against government officers
* Jan Lokpal :
If a government officer delays the work of a citizen beyond scheduled time frame then he will be deemed corrupt by Lokpal and penalized for that.

* Government Lokpal :
There is no penalization of government officers who do not do their duties.

NOTE: The Government had earlier agreed to the proposal in Jan Lokpal on this issue. But this again is missing from the government’s Lokpal draft!
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Corruption allegation against Judiciary
* Jan Lokpal :
Lokpal will have the authority to investigate allegations of corruption against judges.

* Government Lokpal :
Lokpal will NOT have the authority to investigate allegations of corruption against judges.

NOTE: Government wants judiciary to be investigated based on a separate Judicial Accountability Bill (JAB). Anna’s team is fine with that provided the the flaws in giving permission for investigations against judges are removed. In the JAB, permission to investigate allegations against a judge will be given by a three member judge team, two of whom will be judges from the same court, and even the third judge will be a retired chief justice of the same court!
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Corruption allegations against Prime Minister
* Jan Lokpal :
Lokpal will have the authority to investigate allegations of corruption against the Prime Minister.

* Government Lokpal :
Lokpal will NOT have the authority to investigate allegations of corruption against the Prime Minister.

NOTE: Government wants CBI to investigate any allegations of corruption against the Prime Minister. But the fact is that the CBI comes directly under the Prime Minister. So, unlike Lokpal, CBI is not an independent organization in this scenario.
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Anti Corruption Branch of CBI
* Jan Lokpal :
The Anti Corruption Branch of CBI will be merged with Lokpal to give it more independence.

* Government Lokpal :
The Anti Corruption Branch of CBI will continue to remain with CBI, which means direct government control over it, because CBI is controlled by government.
NOTE: Government has now even removed CBI from RTI! So nobody knows what is going on within CBI.

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Dismissal of Corrupt Public Servant
* Jan Lokpal :
Lokpal will have the power to dismiss a corrupt public servant from job.

* Government Lokpal :
Lokpal will have no power to dismiss a corrupt public servant. The concerned minister will decide whether to dismiss a corrupt public servant or not.

NOTE: What if the minister is also a beneficiary of this corruption? Will he in such a case dismiss the corrupt public servant?
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Protection against false complaints
* Jan Lokpal :
Lokpal will impose fine to those who make false complaints or ill motivated complaints. Lokpal will decide whether a complaint is false or not.

* Government Lokpal :
Lokpal will send those who make false complaints to jail for a period of two to five years! The accused can also go to court against the complainant, and in this case, the legal expenses of the accused will be borne by the government, where as the complainant has to pay for the legal expenses from his own pocket.

This one clause in the government’s draft is enough to ensure that nobody will dare to go and complain to Lokpal. If the corrupt who are also generally rich, are able to mute all evidences against them, then the person who complained will have to go to jail, do trips to courts, bear his legal expenses and what not.

NOTE: While the minimum imprisonment for a false complaint is two years in the government’s draft, the minimum imprisonment for those found guilty of corruption is only 6 months! The government’s draft clearly targets the complainant than the accused.
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Selection of the Lokpal Members
* Jan Lokpal :
An independent search committee which consists of retired constitutional authorities (like judges, eminent IAS officers etc) will prepare the first list of eligible candidates. Then an independent selection committee comprising of two politicians, four judges and two retired constitutional authorities will do the selection. So there is no scope for government interference in the selection process of Lokpal members here.

* Government Lokpal :
A Panel of 10 members, 6 of whom are politicians, 5 of whom are from the ruling alliance/ruling party will select the Lokpal members. Even the search committee which searches for eligible lokpal members will be selected by the above mentioned selection committee. 5 members from ruling alliance and totally 6 politicians in a group of 10 will ensure that government will be able to appoint its own people to Lokpal!

NOTE: The Government had earlier agreed to the selection committee proposed by Jan Lokpal. But this proposal is not there in the government’s draft now! Instead we have what is described above in Government’s version.
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Permission to Tap Phones of those alleged of Corruption
* Jan Lokpal :
Lokpal will give permission to tap phones of people suspected to be involved in corruption.

* Government Lokpal :
Home Secretary will give permission to tap phones of people suspected to be involved in corruption!

What if the permission sought is against those who control the Home Secretariat? Is it fair to expect that the Home Secretary will give permission in such cases? What if Home Secretary himself is under the Lokpal scanner?
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Corruption by Business Entities
* Jan Lokpal :
If Lokpal finds that business entities are involved in corruption, then Lokpal will have the right to ban such companies from taking part in future government contracts and to black list them.

* Government Lokpal :
No power to Lokpal to black list any business entity found guilty of corruption.

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Fast Track Hearing of Corruption Cases
* Jan Lokpal :
Lokpal can setup special benches in High Courts to speed up hearing of corruption cases.

* Government Lokpal :
Lokpal has no power to setup special benches like this. Which means slow hearing of corruption cases.
Justice delayed is justice denied.
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Protection to complainants, whistle blowers
* Jan Lokpal :
Lokpal will provide adequate protection and security to complainants and whistle blowers.

* Government Lokpal :
No mention about any protection to those who complaint about cases of corruption.

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Establishment of Lokayuktas
* Jan Lokpal :
There will also be Lokayuktas established at each state level with powers similar to Lokpal. These Lokayuktas will probe into corruption at a state government level against ministers, MLAs and state government officials.

* Government Lokpal :
No establishment of any Lokayuktas through Lokpal Bill.

If people have any issue of corruption at a state government level, then according to the Government’s
Lokpal bill – forget it.
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Method of Enquiry
* Jan Lokpal :
Enquiry will be done just like in any other criminal case. After preliminary enquiry FIR will be registered, and after that investigations will be done, and then the trial will be held in the courts.

* Government Lokpal :
After preliminary enquiry, before filing FIR all evidence collected so far should be presented to the accused, and he should be asked why an FIR should not be filed against him based on that evidence! After investigations, before filing a case against the accused, again all evidences collected so far should be presented to the accused, and he should be asked again as to why a case should not be filed against him!
Now what on earth is this business of showing the evidence to the accused and asking him? Evidences are shown to the courts not to the accused. Does the government want to give an opportunity to the accused to wipe out all evidences? This would also reveal to the accused as to who complained against him, endangering the lives of the complainants and whistle blowers.

Conclusion
In summary, looking at the government’s version of the Lokpal bill, doesn’t it look like that the
government wants to simply pass a bill for the namesake of it and wash its hands off from the entire issue? After 45 years of waiting, the government simply wants to create an illusion that it has passed an anti-corruption law. Do we really need another dummy institution at the tax payer’s expense?

Saturday, 10 December 2011

Jan Lokpal Bill version 2.2 - Hindi जन लोकपाल विधेयक संस्करण 2.2


इस विधेयक का मसविदा केन्द्र में लोकपाल नामक संस्था की स्थापना के लिए तैयार किया गया है. लेकिन इस विधेयक के प्रावधान इस तरह के होंगे ताकि प्रत्येक राज्य में इसी तरह की लोकायुक्त संस्था स्थापित की जा सके. 

जन लोकपाल विधेयक संस्करण 2.2

एक अधिनियम, जो केन्द्र में ऐसी प्रभावशाली भ्रष्टाचाररोधी और शिकायत निवारण प्रणाली तैयार करेगा, ताकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रभावी तन्त्र तैयार हो सके और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को प्रभावी सुरक्षा मुहैया कराई जा सके.  

1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ- 
(1)     इस अधिनियम को जन लोकपाल अधिनियम, 2010 कहा जा सकता है.
(2)     अपने अधिनियमन के 120वें दिन यह प्रभावी हो जाएगा. 

2. परिभाषाएं- इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,- 
(1)     `कार्रवाई´ का अर्थ है किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने कर्र्तव्य के निर्वहन के लिए की गई कोई कार्रवाई और जिसमें निर्णय, संस्तुति या निष्कर्ष अथवा अन्य किसी प्रकार की कार्रवाई सम्मिलित है, इसमें जानबूझकर विफलता, चूक या इसी तरह की अभिव्यक्ति करने वाली कार्रवाई भी शामिल होगी

(2)     `आरोप´ में किसी लोकसेवक के सम्बन्ध में निम्नलिखित में, से किसी भी बात की पुष्टि शामिल है- 
क.     वह सरकारी कर्मचारी है और कदाचार में लिप्त है 
ख.     भ्रष्टाचार में लिप्त है.

(3)     `परिवाद´ में सम्मिलित है, कोई शिकायत या आरोप अथवा भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले व्यक्ति द्वारा सुरक्षा एवं उचित कार्रवाई के लिए किया गया अनुरोध. 

(4)     `भ्रष्टाचार´ के अन्तर्गत वे सभी कृत्य सम्मिलित है, जो भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 9 अथवा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के तहत दण्डनीय तय किए गए हैं.
साथ ही यदि किसी व्यक्ति ने किसी कानून या नियम का उल्लंघन करते हुए सरकार से कोई लाभ लिया हो, वह व्यक्ति और उसके साथ ही वे लोक सेवक जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभ लेने में उस व्यक्ति की सहायता की हो, भ्रष्टाचार में लिप्त माने जाएंगे. 

(5)     `सरकार´ अथवा `केन्द्र सरकार´ से आशय है 'भारत सरकार'.

(6)     शासकीय कर्मचारी´ से आशय है कोई व्यक्ति, जिसकी नियुक्ति किसी भी समय लोक सेवा अथवा केन्द्र सरकार या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय से सम्बन्धित किसी पद के लिए, प्रतिनियुक्ति अथवा स्थायी, अस्थायी या अनुबन्ध के आधार पर हुई है या हुई थी, लेकिन इसमें न्यायाधीश शामिल नहीं होंगे.

(7)     `शिकायत´ का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा यह दावा कि उसे सिटीजन्स चार्टर के अनुसार और उस विभाग के जन शिकायत अधिकारी से सम्पर्क के बाद भी सन्तोषजनक समाधान नहीं मिल पाया.

(8)     `लोकपाल´ से आशय है -
क.     इस अधिनियम के अधीन एवं इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत निर्धारित कार्य  के पालन हेतु गठित पीठें, अथवा 
ख.     इस अधिनियम के अन्तर्गत, या इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत बनाये गये विभिन्न नियमों, विनियमों या आदेशों के अन्तर्गत नियत, तरीके और सीमा में, अपनी शक्तियों का उपयोग करने वाला और अपने कर्तव्यों एवं जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाला कोई अधिकारी या कर्मचारी
ग.      अन्य सभी प्रयोजनों के लिए, संस्था के तौर पर संयुक्त रूप से कार्यरत अध्यक्ष एवं सदस्य;

(9)     `अल्प दण्ड´ और `प्रमुख दण्ड´ से आशय वही होगा जो केन्द्रीय लोक सेवा आचरण नियमों में परिभाषित है. 

(10) `कदाचार´ का अर्थ है वही होगा जैसा कि केन्द्रीय लोक सेवा (आचरण) नियम में परिभाषित है और जिसमें सतर्कता का दृष्टिकोण हो

(11) `लोक प्राधिकरण´ में सम्मिलित है कोई प्राधिकरण अथवा निकाय अथवा स्वशासी संस्था जिसकी स्थापना या गठन-
क.     संविधान द्वारा अथवा संविधान के अन्तर्गत हुआ हो
ख.     संसद द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा हुआ हो;
ग.      सरकार द्वारा जारी अधिसूचना अथवा आदेश, और सरकारी स्वामित्व, नियन्त्रित अथवा पर्याप्त अंश से वित्तपोषित संस्था 

(12) `लोक सेवक´ का अर्थ है, वह व्यक्ति जो किसी भी समय था अथवा है,- 
क.     प्रधानमन्त्री;
ख.     मन्त्री;
ग.      संसद सदस्य;
घ.      उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश;
ङ.       सरकारी कर्मचारी;
च.      अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष (यथा नाम) अथवा स्थानीय प्राधिकरण का कोई सदस्य, जो कि केन्द्रीय सरकार के नियन्त्रण में हो अथवा एक सांविधिक निकाय अथवा निगम जिसका गठन भारतीय संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अन्तर्गत हुआ हो, जिसमें सहकारी समिति भी सम्मिलित है, अथवा ऐसी सरकारी कम्पनी, जो कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 617 के अन्तर्गत अर्थ रखती हो, और सरकार द्वारा स्थापित कोई भी सांविधिक अथवा गैर सांविधिक समिति अथवा परिषद के सदस्य
छ.     इसमें वे सभी सम्मिलित हैं, जो भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 की धारा 2 (सी) में `लोकसेवक´ घोषित हैं.
ज.     ऐसे अन्य प्राधिकारी, जो केन्द्र सरकार की अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर उल्लिखित किए जाएं

(13) `सतर्कता दृष्टिकोण´ में सम्मिलित है-
क.     भ्रष्टाचार की सभी गतिविधियां
ख.     घोर लापरवाही अथवा जानबूझकर की गई लापरवाही, निर्णय लेने में कोताही, प्रणालियों और प्रकियाओं का घोर उल्लंघन, ऐसे मामलों में स्वविवेक अधिकार का अतिरेक जहां कोई प्रकट/सार्वजनिक हित स्पष्ट नहीं है, नियन्त्रणकर्ता अथवा वरिष्ठ अधिकारी को समय पर सूचित करने में चूक
ग.      अपने अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा कर्तव्यों की उपेक्षा अथवा कार्यालय के दुरुपयोग की शिकायत मिलने पर भी कार्रवाई में असफलता/विलम्ब, यदि कानून के अन्तर्गत किसी अधिकारी का ऐसा दायित्व बनता है तो
घ.      प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी के आचरण के माध्यम से भेदभाव में संलिप्तता. 
ङ.       भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वालों का उत्पीड़न
च.      मामले के निस्तारण में किसी तरह का असंगत/अनुचित विलम्ब, सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद, मामले में सतर्कता दृष्टिकोण की उपस्थिति निष्कर्ष को और सुदृढ़ता प्रदान करेगी. 
छ.     किसी से अनुचित पूछताछ या जांच, भ्रष्टाचार के दोषी को अनावश्यक मदद पहुंचाने अथवा निर्दोष को फंसाने के लिए.
ज.     लोकपाल द्वारा समय-समय पर अधिसूचित कोई अन्य विषय सामग्री
(14) `भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाला´ व्यक्ति वह है, जो किसी खतरे का सामना करता है -
क.     पेशेगत नुकसान, जिसमें गैरकानूनी स्थानान्तरण, प्रोन्नति से इंकार, उपयुक्त अनुलाभ से इंकार, विभागीय कार्यवाही, भेदभाव सम्मिलित है पर सीमित नहीं अथवा 
ख.     शारीरिक क्षति अथवा 
ग.      वास्तव में इस तरह की क्षति
जो कि या तो इस अधिनियम के अन्तर्गत लोकपाल से शिकायत करने, अथवा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत याचिका दाखिल करने के कारण से सम्बन्धित है अथवा भ्रष्टाचार अथवा कुशासन को उजागर करने अथवा रोकने के उद्देश्य से की गई कोई अन्य विधिक कार्रवाई.

3. लोकपाल संस्था की स्थापना और लोकपाल की नियुक्ति: 
(1)     लोकपाल नामक एक संस्था होगी, जिसमें अपने अधिकारियों और कर्मचारियों के सहित एक अध्यक्ष और दस सदस्य होंगे. 
(2)     लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चुनाव उसी तरह होगा, जैसा कि इस अधिनियम में बताया गया है.
(3)     लोकपाल के अध्यक्ष अथवा सदस्य के तौर पर नियुक्त व्यक्ति को, अपना कार्यभार सम्भालने से पूर्व, निर्धारित प्रारूप में राष्ट्रपति के समक्ष शपथ अथवा प्रतिज्ञान लेना होगा.
(4)     इस अधिनियम के लागू होने के छ: माह के अन्दर सरकार पहले पहले लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति सरकार करेगी, और सभी प्रचालन तन्त्र एवं परिसम्पत्तियों के साथ संस्था का गठन हो जाएगा. 
(5)     सरकार -
क.     सेवानिवृत्ति, सदस्य अथवा अध्यक्ष की सेवानिवृत्ति के तीन माह पूर्व, अथवा
ख.     किसी अन्य अनपेक्षित कारण से इस तरह की रिक्ति उत्पन्न होने के एक माह के भीतर. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति करेगी

4. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यगण कुछ विशेष कार्यालयों से सबन्द्ध नहीं रहेंगे-लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यगण संसद या किसी राज्य की विधायिका के मौजूदा सदस्य नहीं होंगे या किसी पद या लाभ के न्यास में (अध्यक्ष या सदस्य के पद के अलावा) नहीं रहेंगे या किसी अन्य व्यवसाय या पेशे में नहीं होंगे, अपना कार्यभार सम्भालने से पूर्व, लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य चुना गया व्यक्ति -
(1)     यदि वह किसी न्यास अथवा लाभ के पद पर है, उस पद से त्यागपत्र दे देगा, या
(2)     यदि वह कोई व्यवसाय कर रहा है, उस व्यवसाय के कार्य व्यवहार अथवा प्रबन्धन से अपना सम्बन्ध समाप्त कर लेगा; या
(3)     यदि वह किसी पेशे में है तो उस पेशे को स्थगित करना होगा
(4)     यदि वह प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से किसी अन्य गतिविधि से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से लोकपाल में उसके दायित्वों के प्रदर्शन में हितों का टकराव सम्भव है, उसे उस गतिविधि से अपना जुड़ाव खत्म कर देना होगा. 
उपबन्ध किया गया है कि यदि उस काम के छोड़ देने के बाद भी, उस गतिविधि से जिससे वह पूर्व में जुड़ा था, से लोकपाल में उसके प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है, वह व्यक्ति लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य नियुक्त नहीं किया जा सकेगा.

5. लोकपाल का कार्यकाल एवं अन्य सेवा शर्तें- 
(1)     लोकपाल के अध्यक्ष अथवा सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति का कार्यकाल कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से पांच साल या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, होगा. 
आगे यह भी उपबन्ध है कि
क.     लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य, राष्ट्रपति को सम्बोधित हस्तलिखित पत्र के जरिए पद त्याग सकता है
ख.     अध्यक्ष अथवा सदस्य को इस अधिनियम में निहित तरीके से पद से हटाया जा सकता है. 
(2)     अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य को प्रति माह क्रमश: भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन मिलेगा.
(3)     अध्यक्ष अथवा सदस्य के लिए देय भत्ते व पेंशन और अन्य सेवा शर्तें वहीं होंगी, जैसा निर्धारित किया जाए. 
परन्तु अध्यक्ष अथवा सदस्य को देय भत्ते व पेंशन और अन्य सेवा शर्तें उसकी नियुक्ति के बाद उसके लिए बदली नहीं जाएंगी.
(4)     लोकपाल कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिसमें देय वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, अथवा उस कार्यालय में कार्य कर रहे व्यक्तियों के सम्बन्ध में, भारत की संचित निधि पर भारित होगा. 
(5)     `लोकपाल निधि´ के नाम से एक अलग निधि होगी, जिसमें लोकपाल द्वारा लगाए गए दण्ड/जुर्माने जमा होंगे और जिसमें इस अधिनियम की धारा 19 के अन्तर्गत वसूले गए सार्वजनिक धन के नुकसान का 10 फीसदी भी सरकार द्वारा जमा किया जाएगा. इस निधि का निस्तारण पूरी तरह लोकपाल के विवेक पर होगा और इस निधि का प्रयोग लोकपाल को बढ़ाने/उन्नयन/बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के लिए ही किया जाएगा. 
(6)     लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यगण भारत सरकार या किसी राज्य सरकार अथवा ऐसे किसी निकाय, जो सरकार द्वारा वित्तपोषित हो, में किसी भी पद पर नियुक्ति या संसद, राज्यों की विधायिका अथवा स्थानीय निकायों का चुनाव लड़ने के पात्र नहीं होंगे, यदि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे देने के बाद अध्यक्ष अथवा सदस्य के तौर पर किसी भी अवधि के लिए कोई पद ग्रहण किया है. किसी सदस्य को अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते सदस्य और अध्यक्ष के तौर पर उसका कार्यकाल पांच वर्ष से अधिक न हो और कोई भी सदस्य अथवा अध्यक्ष पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद पुनर्नियुक्ति  या सेवा विस्तार का पात्र नहीं होगा. 

6. अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति
(1)     अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति एक चयन समिति की संस्तुति पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी.
(2)     निम्नलिखित लोग लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्य बनने के पात्र नहीं होंगे:
क.     कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है. 
ख.     कोई व्यक्ति जिसे भारतीय दण्ड संहिता, अपराध संहिता अथवा किसी अन्य अधिनियम के तहत आरोपित किया गया हो अथवा सीसीएस आचरण नियमों के तहत दण्डित किया गया हो.
ग.      कोई व्यक्ति जिसकी उम्र 40 वर्ष से कम हो.
घ.      कोई व्यक्ति जो किसी भी सरकार की सेवा में था और पिछले दो वर्षों के भीतर कार्यालय छोड़ दिया था, या तो त्यागपत्र अथवा सेवानिवृत्ति के माध्यम से. 
(3)     लोकपाल के कम से कम चार सदस्य विधिक पृष्ठभूमि के होंगे. अध्यक्ष सहित दो से अधिक सदस्य पूर्व नौकरशाह नहीं होंगे.
स्पष्टीकरण: कानूनी पृष्ठभूमिका तात्पर्य है कि वह व्यक्ति भारत में कम से कम दस सालों तक न्यायिक सेवा में पद सम्भाल चुका हो अथवा उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में कम से कम 15 साल तक अधिवक्ता रहा हो.
(4)     सदस्यों और अध्यक्ष की निष्ठा असन्दिग्ध हो और पूर्व में उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने के संकल्प का प्रदर्शन किया हो.
(5)     चयन समिति में निम्नलिखित लोग होंगे
क.     भारत के प्रधानमन्त्री
ख.     लोकसभा में नेता विपक्ष
ग.      उच्चतम न्यायालय के सबसे कम उम्र के दो न्यायाधीश
घ.      उच्च न्यायालयों के सबसे कम उम्र के दो न्यायाधीश
ङ.       भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक
च.      मुख्य निर्वाचन आयुक्त
छ.     प्रथम चयन प्रक्रिया के बाद से लोकपाल के अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त होने वाले सदस्य
(6)     प्रधानमन्त्री चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा.
(7)     चयन समिति के विचारार्थ योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार करने हेतु एक खोज कमेटी होगी, जिसमें दस सदस्य होंगे
(8)     खोज समिति के सदस्यों का चयन निम्नलिखित तरीके से होगा
क.     चयन समिति भारत के पूर्व नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षकों और भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्तों में से खोज समिति के पांच सदस्यों का चयन करेगी.
             परन्तु निम्नलिखित लोग खोज समिति के सदस्य बनने के पात्र नहीं होंगे:
(i) कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध विधिवत (सारभूत) भ्रष्टाचार का आरोप लग चुका हो.
(ii) कोई व्यक्ति जो सेवानिवृत्ति के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो गया हो अथवा किसी राजनीतिक दल से उसका गहरा जुड़ाव रहा हो. 
(iii) कोई व्यक्ति जो किसी भी रूप में सरकार की सेवा कर रहा हो.
(iv) कोई व्यक्ति जो सेवानिवृत्ति के बाद भी सरकारी कार्य कर रहा हो, उन कार्यों  को छोड़कर जो कि उस पद के लिए आरक्षित हैं, जिससे वह सेवानिवृत्त हुआ हो. 
ख.     चयनित उपरोक्त पांच सदस्य, नागरिक समाज से पांच सदस्यों को मनोनीत करेंगे.

(9)     खोज समिति ऐसे वर्ग के लोगों अथवा ऐसे व्यक्तियों से संस्तुति अमन्त्रित करेगी, जिन्हें वह इसके लिए उचित समझती हो. इस संस्तुति में अन्य विषयों के साथ-साथ अधोलिखित विवरण होने अनिवार्य हैं.
क.     जिस प्रत्याशी की संस्तुति की गई है, उसका व्यक्तिगत विवरण.  
ख.     प्रत्याशी ने अतीत में अगर किसी कानूनी आरोप या नैतिक भ्रष्टाचार के आरोप का सामना किया है तो उसका पूरा विवरण.
ग.      भ्रष्टाचार के खिलाफ अतीत में उसके द्वारा किए गए प्रयासों का लिखित प्रमाण.
घ.      अतीत का ऐसा विवरण जो यह दर्शाता हो कि वह अपने विवेक से निर्णय करता है और किसी भी तरह उसे प्रभावित नहीं किया जा सकता, यदि कोई हो तो.
ङ.       कोई अन्य सामग्री, जिसका निर्णय खोज समिति करे.
(10)  चयन के लिए अधोलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा -
क.     प्रत्याशियों की सूची उनके समूचे विवरण के साथ, जो उन्होंने उपरोक्त प्रारूप में दिया हो, उसे वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाएगा. 
ख.     इन नामों पर जनता की प्रतिक्रिया मांगी जाएगी. 
ग.      खोज समिति इन प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि और पहले किए गए कार्यों से सम्बन्धित सूचनाएं जुटाने के लिए कोई भी माध्यम इस्तेमाल कर सकती है.
घ.      प्रत्याशियों के बारे में एकत्रित सभी सामग्री खोज समिति के हर सदस्य को अग्रिम तौर पर उपलब्ध कराई जाएगी. समिति के सदस्य हर प्रत्याशी का अपनी ओर से आंकलन करेंगे. 
ङ.       समिति मिलकर हरेक उम्मीदवार के बारे में प्राप्त सामग्रियों पर चर्चा करेगी. चयन मुख्यत: सर्वसम्मति के आधार पर किया जाएगा.
परन्तु जांच समिति के तीन या अधिक सदस्य अगर लिखित कारणों के आधार पर किसी सदस्य के चयन पर आपत्ति करते हैं तो उसका चयन नहीं किया जाएगा.
च.      खोज समिति कुल रिक्तियों की तीन गुना संख्या के बराबर नामों की सूची बनाकर चयन समिति के विराचार्थ प्रस्तुत करेगी
छ.     चयन समिति, रिक्तियों की संख्या के बराबर संख्या में प्रत्याशियों का चयन कर प्रधानमन्त्री को देगी. चयन मुख्यत: सर्वसम्मति के आधार पर किया जाएगा. 
परन्तु अगर चयन समिति के तीन या अधिक सदस्य किसी सदस्य के चयन का विरोध लिखित रूप में देते हैं, तो उस व्यक्ति का चयन नहीं होगा. 
ज.     खोज समिति की सभी बैठकें और सभी चयन की वीडियो रिकॉर्डिंग होगी और इसे सार्वजनिक किया जाएगा. 
(11)  चयन समिति द्वारा तय किए गए नामों की अनुशंसा प्रधानमन्त्री तत्काल राष्ट्रपति से करेंगे, जो इस अनुशंसा प्राप्ति के एक महीने के भीतर नियुक्ति का आदेश जारी करेंगे.
(12)  अगर चयन समिति का कोई सदस्य चयन प्रक्रिया के जारी रहने के दौरान ही सेवानिवृत हो जाता है तो उस स्थिति में वह सदस्य चयन समिति में तब तक बना रहेगा, जब तक कि चयन प्रक्रिया पूरी न हो जाए.

7. अध्यक्ष अथवा सदस्यों को हटाना -
(1)     अध्यक्ष या किसी सदस्य को केवल राष्ट्रपति के आदेश से तभी उसके पद से हटाया जा सकता है जबकि निम्न में से कोई एक या अधिक आधार हो - 
क.     कदाचार प्रमाणित होने पर
ख.     पेशागत, मानसिक या शारीरिक अक्षमता
ग.      दिवालिया
घ.      नैतिक भ्रष्टाचार से सम्बद्ध आरोप लगने पर
ङ.       पद पर रहते हुए किसी दूसरे वैतनिक कार्यों में लिप्त पाए जाने पर
च.      ऐसे आर्थिक लाभ या अन्य लाभ हासिल करने पर जो उस व्यक्ति के सदस्य या अध्यक्ष के रूप में कार्य को प्रभावित कर सकता है.
छ.     अपने पास विचाराधीन मामले में, किसी का पक्ष लेने के उद्देश्य से अथवा किसी को फंसाने के उद्देश्य से, बाहरी प्रभाव द्वारा निर्देशित/संचालित होने पर 
ज.     किसी सरकारी अधिकारी को अनुचित रूप से प्रभावित करने या प्रभावित करने का प्रयास करने पर.
झ.     ऐसी कोई चूक या ऐसा कोई कार्य करने पर, जो भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत दण्डनीय है, या किसी कदाचार में लिप्त पाए जाने पर.
ञ.      यदि कोई सदस्य या अध्यक्ष किसी भी तरीके से, भारत  सरकार अथवा किसी प्रदेश सरकार द्वारा या उसके किसी अधिकारी या उसके प्रतिनिधि द्वारा स्थापित अनुबन्ध या समझौते में रुचि रखता हो या उससे सम्बद्ध हो, या उससे होने वाले लाभों से अथवा उससे होने वाली किसी तरह की आय से सदस्य के अलावा किसी और तरह से सम्बन्ध रखता हो, या किसी निगमित कम्पनी से सम्बद्ध हो, उसे कदाचार का दोषी समझा जाएगा.  
(2)     लोकपाल के किसी सदस्य या अध्यक्ष को निष्कासित करने के लिए अधोलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना होगा.
क.       कोई भी व्यक्ति लोकपाल के एक या अधिक सदस्यों या अध्यक्ष के खिलाफ ठोस सबूत पेश करते हुए उसके निष्कासन की याचिका पेश कर सकता है.
ख.      ऐसी याचिका प्राप्त होने पर सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई करेगा और अधोलिखित में से एक या एक से अधिक कदम उठा सकता है:
(i)   सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल को जांच का आदेश, यदि प्रथम दृष्टया इसकी आवश्यकता महसूस होती है और अगर सम्बन्धित पक्षों द्वारा दायर हलफनामों से इसका निर्णय करना सम्भव न हो सके. विशेष जांच दल तीन महीने के अन्दर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा.
(ii)         विशेष जांच दल द्वारा उपबन्ध (1) के तहत जांच लम्बित होने पर, उस सदस्य से आंशिक अथवा पूरा काम वापस ले लेने का आदेश देना
(iii)               कोई मामला न बनने की स्थिति में याचिका रद्द करना
(iv)             आधारों की पुष्टि होने पर, सम्बन्धित सदस्य अथवा अध्यक्ष को हटाने की अनुशंसा राष्ट्रपति के पास भेजना
(v)                      यदि प्रथमदृष्टया भ्रष्टाचार निरोधी कानून या किसी अन्य कानून के तहत किसी दण्डनीय अपराध का मामला बनता हो तो समुचित एजेंसी को केस दर्ज करने और जांच का निर्देश देना 

ग.      सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम न्यायधीशों के पैनल की पीठ बनेगी. परन्तु अगर इन न्यायाधीशों में से कोई भी कभी चयन समिति का सदस्य रहा हो या जिसके खिलाफ कोई मामला लोकपाल के समक्ष लम्बित हो, वह उस पीठ का सदस्य नहीं हो सकेगा.
घ.      सुप्रीम कोर्ट ऐसी याचिकाओं को इस आधार पर ख़ारिज नहीं कर सकता कि उसके खिलाफ पहले से ऐसा ही मामला विचाराधीन है.
ङ.       अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि याचिका नुकसान पहुंचाने की मंशा या बुरी नीयत से दायर की गई है तो अदालत शिकायतकर्ता पर जुर्माना लगा सकती है या उसे एक साल तक कैद की सजा सुना सकती है. 
च.      सुप्रीम कोर्ट से उपयुर्क्त उपबन्ध (ख)(iv) में अनुशंसा मिलने की स्थिति में प्रधानमन्त्री, सदस्य या सदस्यों अथवा लोकपाल के अध्यक्ष को तत्काल हटाए जाने की अनुशंसा राष्ट्रपति से करनी होगी जो उस सदस्य या सदस्यों अथवा अध्यक्ष को अनुंशसा प्राप्त होने के एक महीने के भीतर हटाने का आदेश जारी करेंगे.       

लोकपाल की शक्तियां एवं कार्य

8. लोकपाल के कार्य: 
(1)     लोकपाल ऐसी शिकायतों की प्राप्तियों के लिए उत्तरदायी होगा जिनमें-
क.     जिसमें भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अधीन चूक के आरोप हों या दण्डनीय कृत्य के आरोप लगाए गए हों,
ख.     जहां सरकारी सेवक पर दुर्व्यवहार के आरोप हों
ग.      शिकायत 
घ.      भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों से मिली शिकायतें,
ङ.       लोकपाल के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें

(1क) अपने कर्मचारियों की अखण्डता सुनिश्चित करना, चाहे वह स्थाई हों अथवा अन्य, लोकपाल का मुख्य कर्र्तव्य होगा. लोकपाल इसे यह सुनिश्चित करने के लिए पूर्णत सक्षम एवं सशक्त होगा. 

(2)     लोकपाल, जांच एवं पूछताछ के बाद, जैसा वह उचित समझे, निम्नलिखित कार्यों में से एक या एकाधिक कार्रवाई कर सकता है:
क.     अगर प्रथम दृष्टया शिकायत नहीं बनती है तो मामला बन्द करना, अथवा 
ख.     सरकारी कर्मचारी और साथ ही साथ उस व्यक्ति, जो इस कृत्य में पक्षकार है, के खिलाफ आरोप- पत्र दाखिल करना
ग.      अगर सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अधीन अन्तत: दोषी पाया जाता है तो सुसंगत आचार संहिता के तहत उस पर युक्तियुक्त दण्ड आरोपित करने की अनुशंसा करना और उस सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी की भी सुनिश्चित सिफारिश करना
घ.      जांच के अधीन विषयगत यदि किसी लाइसेंस या पट्टा या स्वीकृति या ठेका या समझौते को रद्द करने अथवा संशोधित करने का आदेश दे सकता है
ङ.       अगर भ्रष्टाचार के कृत्य में सम्बन्धित प्रतिष्ठान या कम्पनी या ठेकेदार या किसी अन्य को शामिल पाया जाता है तो उसे प्रतिबन्धित सूची में डालने का आदेश देना
च.      इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक, समुचित अधिकारियों को शिकायतों के निवारण के लिए उपयुक्त दिशा निर्देश जारी करना 
छ.     अगर लोकपाल के आदेश का विधिवत अनुपालन नहीं होता है, तो उन आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए इस अधिनियम के तहत आदेश जारी करना
ज.     इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जरूरी कार्रवाई करना 

(3)     अगर किसी भी मामले में लोकपाल को किसी स्रोत से जानकारी हो है, तो वह इस अधिनियम के अन्तर्गत, अगर इस तरह का कोई मामला उपबन्ध (1) की धारा (क), (ख), (ग) या (घ) में उल्लेखित है, स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई कर सकता है.

(4)     समय-समय पर जरूरत पड़ने पर समुचित अधिकारी को उनके कामकाज, प्रशासन एवं अन्य व्यवस्था में परिवर्तन के लिए दिशा-निर्देश जारी कर सकता है, ताकि भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार, जन शिकायत एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की प्रताड़ना की गुंजाइश और सम्भावना कम हो सके

(5)     इस धारा की उपधारा (2) (ग) के अन्तर्गत लोकपाल द्वारा जारी किए गए आदेश सरकार के लिए बाध्यकारी होंगे और आदेश मिलने के एक सप्ताह के अन्दर उसका कार्यान्वयन जरूरी होगा. 

(6)     भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 19 को समाप्त कर दिया जाएगा. इस अधिनियम के कार्यान्वयन में दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापना अधिनियम की धारा 6-क लागू नहीं होगी.

(7)     इस अधिनियम की किसी भी कार्यवाही में अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 लागू नहीं होगी. किसी भी कानून के तहत लोकपाल से एक बार स्वीकृति मिल जाने के बाद, ऐसी सभी स्वीकृतियां, जो आरम्भिक जांच के लिए जरूरी हैं, प्रदत्त मानी जाएंगी.

9. सर्च वारण्ट जारी होना आदि-
(1)     जहां लोकपाल, अपने पास उपलब्ध सूचना के आधार पर
क.     अगर यह यकीन करने का कोई कारण देखता है, कि कोई व्यक्ति-
(i)      जिसे इस अधिनियम के अन्तर्गत सम्मन या नोटिस जारी किया गया है या जारी किया जा सकता है, जो किसी जांच के लिए ज़रूरी या उपयोगी कोई सम्पत्ति दस्तावेज या अन्य कोई वस्तु प्रस्तुत नहीं करेगा, या नहीं कर पाएगा, या प्रस्तुत नहीं करने की वजह होगा
(ii)       जिसके कब्जे में मुद्रा, स्वर्ण, आभूषण या दूसरी मूल्यवान चीजें या वस्तुएं हैं और ऐसी मुद्रा, स्वर्ण, आभूषण या दूसरी मूल्यवान चीजें हैं जिनकी घोषणा, सम्पत्ति की घोशणा करने सम्बन्धी किसी भी प्रभावी कानून के अन्तर्गत सक्षम प्राधिकार के समक्ष,  अंशत: या पूर्णत: नहीं की गई है 
. विचार करता हो कि उसके द्वारा आरम्भ की गई किसी भी जांच या अन्य कार्रवाई का उद्देश्य, सामान्य खोज या निरीक्षण द्वारा पूरा होगा,
सर्च वारण्ट के ज़रिए किसी ऐसे पुलिस अधिकारी को, जिसका ओहदा पुलिस इंस्पेक्टर से नीचे नहीं होगा, तलाशी लेने, निरीक्षण करने के लिए तदानुसार अधिकृत करेगा, और ऐसा करने के लिए वह अधिकारी- 
(i)         किसी भी इमारत या स्थान, जहां उसे ऐसी किसी सम्पत्ति, दस्तावेज, रकम, स्वर्ण, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तु के रखे जाने के सन्देह का कारण हो, वह प्रवेश कर सकेगा और तलाशी ले सकेगा.
(ii)       किसी ऐसे व्यक्ति की तलाशी ले सकेगा जिस पर कि स्वयं को छिपाने या किसी वस्तु को छिपाने का सन्देह हो. 
(iii)      वह उप नियम-(i) के अन्तर्गत प्राप्त शक्तियों के तहत ऐसा कोई भी दरवाजा, बक्सा, लॉकर, सेफ, आलमारी या अन्य पात्र धारक का ताला तोड़ सकेगा जिसकी चाबी उपलब्ध नहीं है. 
(iv)    ऐसी तलाशी में प्राप्त किसी सम्पत्ति, दस्तावेज, रकम, स्वर्ण, आभूषण या अन्य कीमती चीजों जब्त करे 
(v)     किसी भी सम्पत्ति या दस्तावेज पर पहचान के चिन्ह बनाए ताकि कोई उसे निकाल न सके अथवा उसकी नकल न कर सकें.
(vi)    ऐसी किसी भी सम्पत्ति, दस्तावेज, पैसे, स्वर्ण, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तुओं या चीजों को सूचीबद्ध कर दर्ज किया जाएगा.

(2)     उपधारा (1) के तहत तलाशी एवं जब्ती में, यथासम्भव, अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 के सम्बन्धित प्रावधान लागू होंगे

(3)     उपधारा (1) के अधीन सभी उद्देश्यों के लिए जारी सभी वारण्ट, अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 93 के अधीन अदालत द्वारा जारी वारण्ट समझा जाएगा. 

10. साक्ष्य-
(1)     इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत किसी भी जांच के उद्देश्य से, (अगर कोई प्रारम्भिक जांच है, सहित) लोकपाल किसी भी सरकारी कर्मचारी या कोई अन्य व्यक्ति, जो उनकी राय में किसी जांच के लिए प्रासंगिक सूचना उपलब्ध कराने या दस्तावेज देने में सक्षम है, सूचना देने अथवा दस्तावेज़ प्रस्तुत कराने के लिए तलब कर सकेगा.

(2)     लोकपाल को नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत कोई याचिका दायर करते हुए, निम्नलिखित मामलों में, ऐसी किसी भी जांच के उद्देश्य से (आरम्भिक जांच सहित) वे सारी शक्तियां प्राप्त होंगी जो नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत किसी प्रकार का निपटारा करते हुए दीवानी न्यायालय को प्राप्त हैं - 
क.     किसी भी व्यक्ति को उपस्थित रहने के लिए बाध्य करने और उसे सम्मन जारी करने और उससे शपथ लेना;
ख.     किसी भी दस्तावेज की खोज एवं उसे प्रस्तुत करना
ग.      हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करना;
घ.      किसी न्यायालय या कार्यालय से कोई सार्वजनिक रिकार्ड या उसकी प्रतिलिपि हासिल करना
ङ.       दस्तावेज या गवाह की जांच के के लिए आदेश जारी करना;
च.      गलत या अफसोसनाक दावा या रक्षा के आलोक में क्षतिपूर्ति भुगतान का आदेश;         
छ.     देरी के लिए हर्जाने का आदेश 
ज.     ऐसे अन्य मामले, जिन्हें निर्धारित किया जा सकता है

(3)     लोकपाल के सम्मुख कोई भी कार्रवाई भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193 के अर्थ में एक न्यायिक कार्रवाई समझी जाएगी.

11. लोकपाल की रिपोर्ट इत्यादि-
(1)     लोकपाल के अध्यक्ष, प्रतिवर्ष, राष्ट्रपति को अपने कार्य निष्पादन पर, निर्धारित प्रारूप में प्रतिवेदन पेश करेंगे. 

(2)     राष्ट्रपति, प्रतिवेदन की प्रति, व्याख्यात्मक ज्ञापन देते हुए संसद के दोनों सदनों में रखवाएंगे.

(3)     लोकपाल हरेक महीने अपनी वेबसाइट पर ऐसे मामलों की एक सूची, संक्षिप्त विवरण, परिणाम एवं कृत अथवा प्रस्तावित कार्रवाई के विवरण के साथ प्रकाशित करेगा, इस वेबसाइट पर पिछले एक महीने में लोकपाल द्वारा प्राप्त मामलों की सूची, निपटाए गए, और लम्बित पड़े मामलों की सूची भी भी प्रकाशित की जाएगी.

12. लोकपाल एक मान्य पुलिस अधिकारी होगा
(1)     अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 36 के उद्देश्य के लिए, लोकपाल के अध्यक्ष, सदस्य और इसकी जांच शाखा के अधिकारियों को पुलिस अधिकारी माना जाएगा.

(2)     भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत किसी अपराध की छानबीन करते हुए वे उस मामले में किसी दूसरे कानून के अन्तर्गत किसी अपराध की जांच के लिए भी सक्षम होंगे.
  
13. आदेशों की अवज्ञा में लोकपाल की शक्ति-
(1)     लोकपाल के प्रत्येक आदेश में उन अधिकारियों का नाम पूरी तरह स्पष्ट किया जाएगा, जो उसे अमल में लाएंगे, आदेश के अमल में लाने की प्रक्रिया और उसके अनुपालन की समय सीमा का विवरण भी स्पष्ट दिया जाएगा. 

(2)     अगर लोकपाल के आदेश का क्रियान्वयन निर्धारित प्रक्रिया और समय सीमा के भीतर नहीं होता है तो लोकपाल अवमानना के दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगाने का निर्णय ले सकता है.

(3)     सम्बन्धित विभाग के आरेखण और संवितरण अधिकारी को, उपधारा (2) के तहत जारी आदेश में उल्लेखित, जुर्माना अधिकारियों के वेतन में से काटने का निर्देश दिया जाएगा. 
परन्तु जिन अधिकारियों पर जुर्माना लगेगा, उन्हें सुनवाई का एक मौका दिए बिना उनका वेतन नहीं कटेगा. यह भी कि अगर आरेखण और संवितरण अधिकारी इन अधिकारियों का वेतन काटने में असमर्थ होता है तो वह स्वंय ही इस दण्ड के लिए उत्तरदायी होगा.

(4)     अपने आदेश की अनुपालना कराने के लिए, लोकपाल के पास वे सभी अधिकार क्षेत्र, शक्तियां एवं अधिकार  होंगे जोकि उच्च न्यायालय के पास हैं, और लोकपाल अपनी अवमानना के सम्बन्ध में इनका प्रयोग कर सकेगा, और इस उद्देश्य के लिए न्यायालय की अवमानना अधिनियम १९७१ (1971 का केन्द्रीय अधिनियम 70) को संशोधित करते उच्च न्यायालय के लिए निहित सन्दर्भ में लोकपाल की अवमानना को भी शामिल किया जाता है. 

13क. भ्रष्टाचार अधिनियम की निवारण धारा 4 के तहत विशेष न्यायाधीश 
(1)     वार्षिक आधार पर, लोकपाल विशेष भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम 1988 की धारा 4 के तहत हर क्षेत्र में न्यायाधीशों की संख्या का आंकलन करेगा और सिफारिश के तीन महीने के भीतर ही सरकार उतनी ही संख्या में न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगी. 
परन्तु यह भी कि लोकपाल विशेष न्यायाधीशों की उतनी ही संख्या की सिफारिश करेगा जितनी कि इस अधिनियम के तहत प्रत्येक मामले का निपटारा एक वर्ष के भीतर होने के लिए आवश्यक होंगी.

(2)     कोई नई नियुक्ति करने से पहले, सरकार, उम्मीदवारों की निष्ठा सुनिश्चित करने हेतु, चयन प्रक्रिया पर लोकपाल से परामर्श करेगी. सरकार उन सिफारिशों को लागू भी करेगी. 

13ख. अनुरोध पत्र जारी करना: लोकपाल की खण्डपीठ को लोकपाल में लम्बित किसी मामले में अनुरोध पत्र (एक न्यायाधीश को दूसरे न्यायाधीश द्वारा जारी किए जाना वाला) जारी करने का अधिकार होगा. 

13ग. भारतीय तार अधिनियम के तहत अधिकार: लोकपाल की खण्डपीठ, भारतीय तार अधिनियम की धारा 5 के तहत पदनामित प्राधिकरण मान्य होगी. इस पीठ को टेलीफोन, इण्टरनेट अथवा भारतीय तार अधिनियम तथा, सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 तथा भारतीय तार अधिनियम 1885 के तहत जारी नियमावली के सहित, दायरे में आने वाले अन्य माध्यम इत्यादि पर संचरित सन्देशों, आकड़ों और आवाजों पर निगरानी रखने या उन्हें रोककर सुनने का अधिकार होगा. 

लोकपाल की कार्यप्रणाली
14. लोकपाल की कार्यप्रणाली:
(1)     अध्यक्ष लोकपाल की संस्था के समग्र प्रशासन और पर्यवेक्षण के लिए उत्तरदायी होगा.

(2)     नीति-नियम निर्धारण सहित लोकपाल के कामकाज के लिए आन्तरिक प्रणाली विकसित करने, लोकपाल में विभिन्न अधिकारियों को कार्य देने, लोकपाल में विभिन्न पदाधिकारियों को अधिकार देने जैसे कार्य लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यों द्वारा एक संस्था के तौर पर सामूहिक रूप से किए जाएंगे.

(3)     लोकपाल के अध्यक्ष की प्रधानमन्त्री के साथ वित्त और कर्मचारियों की जरूरत के आकलन के लिए वार्षिक बैठक होगी. इस बैठक में हुए निर्धारण के आधार पर सरकार द्वारा लोकपाल को संसाधन प्रदान कराए जाएंगे.

(3क) निर्धारित व्यय भारत के समेकित निधि से दिया जाएगा.

(3ख) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य अपने कर्मचारियों की अखण्डता और सभी तरह की पूछताछ और जांच की अखण्डता सुनिश्चित करने के लिए हर सम्भव कदम उठाएंगे. इस उद्देश्य के लिए वे अयोग्य अथवा भ्रष्ट कर्मियों को त्वरित सज़ा देने हेतु नियम बनाने, काम का मानदण्ड निर्धारित करने, प्रक्रिया निर्धारित करने अथवा अन्य कोई कदम उठाने के लिए सक्षम होंगे. 

(3ग) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य अधिनियम द्वारा सुनिश्चित समय सीमा का कड़ाई से पालन कराने के लिए ज़िम्मेदार होंगे और समुचित कदम उठाने के लिए सक्षम होगें.

(3घ) लोकपाल पूरी तरह से प्रशासनिक, वित्तीय और कार्यात्मक सहित सभी मामलों में सरकार के हस्तक्षेप से स्वतन्त्र होगा. 

(4)     लोकपाल तीन या अधिक सदस्यों की पीठ में कार्य करेगा. इस पीठ का गठन क्रमिक तरीके से होगा और उन्हें मामले कम्प्यूटर के द्वारा क्रमिक तरीके से सौंपे जाएंगे. प्रत्येक पीठ में कम से कम एक सदस्य विधिक पृष्ठभूमि वाला होगा. 

(5)     इन पीठों का दायित्व होगा : 
क.     कुछ विशिष्ट श्रेणी के मामलों में अभियोजन आरम्भ करने की अनुमति देना
ख.     अपने कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत सुनना
ग.      लोकपाल के अधिकारियों द्वारा जांच अथवा सतर्कता के बन्द कर दिए मामले या लोकपाल द्वारा समय-समय पर निर्धारित की गई श्रेणी के, मामलों में अपील 
घ.      ऐसे अन्य आदेशों के लिए, जिनका निर्णय समय-समय पर लोकपाल द्वारा लिया जा सकता है.
परन्तु लोकपाल कि पूरी पीठ मापदण्ड बनाएगी कि किस तरह के मामले सदस्यों की पीठ देखेगी और कौन से मामलों का निर्णय मुख्य सतर्कता अधिकारी या सतर्कता अधिकारियों के स्तर पर होगा. ये मापदण्ड सरकार को हुए घाटे और/या जनता पर उसके असर और/या दोषी की स्थिति पर आधारित हो सकते हैं.
लोकपाल स्वत: जांच-पड़ताल करने का निर्णय ले सकता है.

(6)     कैबिनेट के किसी भी सदस्य के खिलाफ लोकपाल की पूरी पीठ जांच-पड़ताल या अभियोग शुरू कर सकती है.

(7)     इस अधिनियम के प्रावधान के अन्तर्गत कुछ मुद्दों पर लोकपाल की पूरी पीठ निर्णय लेगी. उस पीठ में कम से कम सात सदस्य होंगे.

(8)     लोकपाल की बैठक के कार्य विवरण और दस्तावेज सार्वजनिक होंगे. 

15. लोकपाल के पास शिकायत दर्ज कराना:
(1)     इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, कोई भी व्यक्ति लोकपाल को इस अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करा सकता हैं.
बशर्ते इस शिकायत के मामले में, यदि व्यक्ति मर चुका है या किसी भी कारण से वह खुद यह कार्य करने में असमर्थ है, तो यह उस व्यक्ति के वैधानिक प्रतिनिधि या उसके द्वारा लिखित रूप से अधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शिकायत दर्ज कराई जा सकती है और यदि शिकायत हो चुकी है तो लिखित तौर अधिकृत प्रतिनिधि के द्वारा शिकायत को जारी रखा जा सकता हैं.
यह भी कि नागरिक अपनी शिकायत देश में कहीं भी लोकपाल के किसी भी कार्यालय में दर्ज करा सकते हैं. लोकपाल कार्यालय का यह कर्र्तव्य होगा कि वह अपने तहत किसी युक्तियुक्त  लोकपाल अधिकारी को शिकायत पत्र हस्तान्तरित कर दे. 
(2)     शिकायत किसी सादे कागज पर भी लिखकर दर्ज कराई जा सकती है परन्तु उसमें लोकपाल द्वारा निर्धारित सभी विवरण शामिल होने चाहिए. 
(2क) अपनी वार्षिक रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करने के बाद, भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक ऐसे सभी मामलों को लोकपाल को अग्रेशित करेंगे, जो इस अधिनियम के अन्तर्गत आरोप निर्धारित करते हैं और लोकपाल उन पर इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप ही कार्य करेगा.
(3)     शिकायत प्राप्त होने पर, लोकपाल यह फैसला करेगा कि यह आरोप है या शिकायत या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले की सुरक्षा के लिए अनुरोध है या दोनों का मिश्रण है या इससे कुछ अधिक है.
(4)     लोकपाल को हर शिकायत अनिवार्य तौर पर निपटानी होगी. 
परन्तु शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना किसी शिकायत को बन्द नहीं किया जाएगा. 

16. लोकपाल द्वारा जिन मामलों की जांच की जा सकती है- इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन लोकपाल किसी ऐसे कार्य की जांच कर सकता है जो किसी लोकसेवक के द्वारा किया गया हो, अथवा उसकी सामान्य या विशिष्ट स्वीकृति से किया गया हो, जिसकी शिकायत की रिपोर्ट की गई हो अथवा ऐसे कार्य के बारे में कोई आरोप लगाया गया हो. 
परन्तु लोकपाल इस तरह के कार्य की स्वत: अथवा सरकार द्धारा कहे जाने पर भी जांच कर सकता है, यदि उसकी लिखित राय में ऐसे काम में कोई शिकायत या आरोप हो या होने की सम्भावना हो. 

17. वे मामले जो जांच के दायरे से बाहर होंगे 
(1)     लोकपाल, अधिनियम के अन्तर्गत निम्न कार्रवाई के सम्बन्ध में शिकायत के मामले में, कोई जांछ नहीं करेगा - 
क.     यदि शिकायतकर्ता के पास  किसी अन्य कानून द्वारा प्रदत्त किसी प्राधिकरण के सामने अपील, पुनरीक्षण, समीक्षा या किसी अन्य माध्यम से कोई निवारण है, या था और उसने उसका उपयोग नहीं किया है. 
ख.     न्यायिक व अर्द्ध न्यायिक निकायों द्वारा लिए गए निर्णय जब तक कि शिकायतकर्ता दुर्भावनापूर्ण होने का आरोप न लगाए.
ग.      यदि पूरी शिकायत तात्विक रूप में किसी न्यायालय या सक्षम न्याय अधिकार क्षेत्र की अर्ध- न्याययिक संस्था के समक्ष लम्बित है
घ.      ऐसी कोई शिकायत जहां इसे निपटान करने में अत्यधिक एवं अबोध्य विलम्ब हो.
(2)     इस अधिनियम में ऐसा कुछ भी नहीं है कि लोकपाल संसद के किसी सदन के पीठासीन अधिकारी की स्वीकृति लेने के बाद ही किसी कार्रवाई की जांच करेगा.
(3)     इस अनुच्छेद की कोई बात लोकपाल को कदाचार या भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले की सुरक्षा के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से नहीं रोक सकती है.

18. शिकायत और जांच से सम्बन्धित प्रावधान-
(1)     क. लोकपाल, किसी शिकायत, आरोप के रूप में प्राप्त किसी शिकायत अथवा दोनों, या स्वत: संज्ञान से उठाए गए किसी मामले में, दस्तावेज़ों को देखते हुए, जांच या पूछताछ की प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय ले सकता है, या जांच और पूछताछ की प्रक्रिया की सुनवाई के पहले प्रारम्भिक जांच का निर्णय ले सकता है या किसी दूसरे व्यक्ति को प्रारम्भिक जांच करने का निर्देश दे सकता है ताकि किसी जांच के लिए उचित आधार है या नहीं यह तय किया जा सकें. प्राथमिक जांच के परिणाम आते ही इसकी जानकारी, और यदि मामले को बन्द करने का निर्णय लिया जाता है तो जांच के दौरान एकत्र की गई समस्त सामग्री शिकायकर्ता को उपलब्ध कराई जाएगी. 
             साथ ही यह भी कि यदि, किसी मामले को बन्द किया जाता है तो उससे सम्बन्धित सभी दस्तावेज सार्वजिनक माने जाएंगे. हर महीने, बन्द किए गए ऐसे मामलों की सूची, मामले को बन्द किए जाने के कारण सहित,  वेबसाइट पर डाली जाएगी. इस तरह बन्द किए गए मामलों से सम्बन्धित सारी सामग्री सूचना के अधिकार के कानून के तहत, जानकारी मांगने वाले किसी भी व्यक्ति को, उपलब्ध कराई जाएगी
             परन्तु साथ ही यह भी कि किसी भी शिकायत या आरोप को, शिकायतकर्ता के उद्देश्य अथवा प्रेरणा के आधार पर खारिज़ नहीं किया जा सकेगा. 
साथ ही यह भी कि, लोकपाल के समक्ष की गई सभी सुनवाइयों की वीडियो रिकार्डिंग होगी और किसी भी व्यक्ति को, प्रतियां बनाने के मूल्य अदा करने पर, उपलब्ध कराई जाएगी.

ख.     किसी शिकायत की प्रारम्भिक जांच के लिए प्रक्रिया लोकपाल द्वारा मामले की परिस्थियों के आधार पर तय की जाएगी और यदि आवश्यक प्रतीत होता है तो लोकपाल सम्बन्धित लोक सेवक से टिप्पणी भी आमन्त्रित कर सकता है. 
परन्तु यह भी कि, प्राथमिक जांच पूरी करने और मुकदमे को बन्द करने या जांच के लिए आगे बढ़ाने का निर्णय शिकायत प्राओत करने के एक माह के अन्दर और निश्चित तौर पर तीन माह के अन्दर ले लिया जाएगा. यदि एक महीने में जांच पूरी नहीं हो पाती वहां जांच पूरी होने पर विलम्ब का कारण लिखित तौर पर दर्ज कर के सार्वजनिक किया जाएगा.

ग.      इस अधिनियम के तहत कोई भी शिकायत गुमनाम स्वीकार नहीं की जाएगी. शिकायतकर्ता  को लोकपाल के पास अपनी पहचान ज़ाहिर करनी होगी. तथापि यदि शिकायकर्ता चाहता है तो लोकपाल द्वारा उसकी पहचान गोपनीय रखी जाएगी. 

(2)  जहां लोकपाल सीधे सीधे या प्रारम्भिक जांच के बाद इस अधिनियम के अन्तर्गत जांच प्रस्तावित करता है, तो- 
क.     जरुरी समझने पर जांच से सम्बन्धित दस्तावेजों को सुरक्षित स्थान पर रखने का निर्देश दे सकता है. 
ख.     जांच के उचित चरण पर या खत्म होने पर, जांच रिपोर्ट की प्रति, उसके निष्कर्ष एवं निष्कर्ष से सम्बन्धित आधार सामिग्री की प्रति सम्बन्धित लोक सेवक और शिकायतकर्ता को अग्रेशित की जाएगी.  
ग.      सम्बन्धित लोक सेवक और शिकायतकर्ता को टिप्पणी और सुनवाई का मौका दिया जाएगा.  
साथ ही यह भी कि अति विशिष्ट परिस्थितियों को छोड़ कर ऐसी सुनवाई सार्वजनिक रूप से की जाएगी, और उसे लिखित तौर पर रिकार्ड किया जाएगा, जहां यह सार्वजनिक हित में नहीं है, न्याय के हित के लिए इसे कैमरे में रिकार्ड कर सार्वजनिक किया जाएगा.
(3)  इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी कार्रवाई के सम्बन्ध में लोक सेवक के खिलाफ जांच करना उस कार्रवाई को, या जांच के अधीन किसी मामले के सम्बन्ध में आगे कोई कार्रवाई करने के लिए किसी अन्य लोक सेवक की शक्ति को प्रभावित नहीं करेगा. 
(4)     यदि इस अधिनियम के तहत प्रारम्भिक जांच के दौरान, लोकपाल प्रथम दृष्टया सन्तुष्ट है कि आरोपों या शिकायतों के परिप्रेक्ष्य में पूरी या आंशिक तौर पर किसी भी तरह की कार्रवाई की सम्भावना है तो वह एक अन्तरिम आदेश के माध्यम से, लोक प्राधिकरण को निर्णय या कार्रवाई के क्रियान्वयन या अमलीकरण पर रोक लगाने की सिफारिश कर सकता है, या ऐसे नियम व शर्तों पर वह बाध्यकारी या निवारक कार्रवाई कर सकता है, जो और ज्यादा नुकसान से रोकने के वह अपने आदेश में उल्लेखित करे. लोक प्राधिकरण इस उप अनुच्छेद के अन्तर्गत आदेश प्राप्त करने के 15 दिन के अन्दर लोकपाल की सिफारिशों पर या तो अमल करेगा या उन्हें नामंजुर करेगा. लोकपाल यदि आवश्यक समझे तो, लोक प्राधिकरण को उपयुक्त निर्देश देने की मांग करते हुए सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है. 
(5)     लोकपाल, यदि जांच के दौरान सन्तुष्ट होता है कि किसी मामले में अभियोग शुरू होने की सम्भावना है, या जांच की समाप्ति पर अभिय्ग शुरू करते समय, मामले में सभी आरोपियों की चल अचल सम्पित्ति की सूची बनाएगा और उसे अधिसूचित करेगा. अधिसूचना के पश्चात इस सम्पत्ति के हस्तान्तरण की अनुमति नहीं होगी. अन्तिम सजा की स्थिति में अदालत, अन्य उपायों के अलावा, इस अधिनियम की धारा 19 के अन्तर्गत, इस सम्पत्ति से भ्रष्टाचार के चलते हुई क्षति की वसूली कर सकता है. 
(6)     यदि शिकायतों की जांच और पूछताछ के दौरान, लोकपाल को लगता है कि सरकारी सेवक के पद पर बने रहना जांच या पूछताछ को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित कर सकता है या वह सरकारी सेवक सबूतों को नष्ट या छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित कर सकता है, तो लोकपाल उस सरकारी सेवक के स्थानान्तरण या निलम्बन की उपयुक्त सिफारिश जारी कर सकता है. लोक प्राधिकरण लोकपाल द्वारा की गई सिफारिश के मिलने के 15 दिन के भीतर इसे उप धारा के अन्तर्गत इसे मान भी सकता है या मना कर सकता है. यदि लोकपाल इसे महत्वपूर्ण मानता है तो वह सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है और लोक प्राधिकरण के लिए उपयुक्त निर्देश की मांग कर सकता है.
(7)     लोकपाल, इस अधिनियम के अन्तर्गत पूछताछ अथवा जांच के किसी भी चरण में, अन्तरिम आदेश के ज़रिए, सक्षम प्राधिकारों को आवश्यक कार्रवाई करने, पूछताछ या जांच रोकने का निर्देश दे सकता है-
क.     लोक सेवक के प्रशासनिक कार्य से सार्वजनिक राजस्व अपव्यय को रोकने या सार्वजनिक सम्पत्ति की क्षति के लिए
ख.     सरकारी सेवक के कार्यों में कदाचार को रोकने के लिए 
ग.      सरकारी सेवक द्वारा भ्रष्ट तरीके से अर्जित सम्पत्ति को छिपाने से रोकने के लिए,
इस उप अनुच्छेद के अन्तर्गत लोक प्राधिकरण आदेश प्राप्त करने के 15 दिन के भीतर इस पर अमल करेगा अन्यथा नामंजूर करेगा. यदि लोकपाल इसे महत्वपूर्ण समझे तो वह सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है और लोक प्राधिकरण के लिए उपयुक्त निर्देश की मांग कर सकता है.
(8)     जहां, शिकायत पर जांच के बाद, लोकपाल यह पाता है कि, मन्त्रियों, संसद सदस्यों एवं न्यायधीशों के अतिरिक्त, किसी लोक सेवक के खिलाफ शिकायत में शामिल आरोप की पुष्टि होती है और सम्बन्धित लोक सेवक को अपने पद पर कायम नहीं रहना चाहिए तो वह इस हेतु आदेश जारी कर सकता है, यदि लोकसेवक मन्त्री है तो लोकपाल राष्ट्रपति को ऐसी शिकायत करेगा. राष्ट्रपति द्वारा सिफारिश प्राओत करने के एक माह के अन्दर, उसे स्वीकार करने या नामंजूर करने का निर्णय लिया जाएगा.
परन्तु यह भी कि इस अनुच्छेद के प्रावधान प्रधानमन्त्री पर लागू नहीं होंगे.
(9)     लोकपाल के सभी रिकार्ड और सूचनाएं सूचना का अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक किए जाएंगे. और यहां तक कि जांच व पूछताछ की स्थिति भी, जब तक कि उस सूचना के जारी करने से किसी जांच व पूछताछ की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ता हो, उपलब्ध कराए जाएंगे.


भ्रष्टचार के चलते सरकार को होने वाले नुकसान की भरपाई और दण्ड

19. सरकार को होने वाले नुकसान की वसूली: भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 की धारा 19 के तहत जब कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तब परीक्षण न्यायालय, सरकार को हुए नुकसान और दोषी द्वारा भ्रष्टाचार के माध्यम से अर्जित लाभ की गणना कर, इस तरह की कुल राशि को विभिन्न दोषियों के ऊपर आरोपित किया जाएगा और उनकी सम्पत्ति के ज़रिए वसूला जाएगा. 

19क. अपराध के लिए सज़ा भ्रष्टाचार निरोधक कानून की उपधारा 2 (4) और उपधारा 28ए के अध्याय iii में  विर्णत अपराध के लिए कम से कम एक वर्ष के सश्रम कारावास की सज़ा होगी और इसे उम्रकैद के तक भी बढ़ाया जा सकता है. 
दोषी व्यक्ति के सरकार में उच्च पद पर आसीन होने की स्थिति में यह सज़ा और भी कठोर हो सकती है. 
इसके अतिरिक्त, बशर्तें  कि, अपराध इस अधिनियम की उपधारा 2(4) के तहत विर्णत है और लाभार्थी एक व्यावसायिक इकाई है तो, इस अधिनियम में वर्णित एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत अन्य सजा के अलावा जनता को हुए नुकसान का की पांच गुना राशि दोषी से जुर्माने के रूप में वसूली जाएगी,  अगर दोषी की सम्पत्ति अपर्याप्त है तो यह वसूली व्यावसायिक ईकाई और उसके निदेशकों की व्यक्तिगत सम्पत्ति से वसूली जा सकती है.

उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों के खिलाफ शिकायतों का निपटान
19ख. हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट के जजों के खिलाफ शिकायतों की प्राप्ति व निपटाना:
(1)     हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट के जजों के खिलाफ किसी भी शिकायत को केवल लोकपाल अध्यक्ष ही देखे.
(2)     इस तरह की प्रत्येक शिकायत की प्रारम्भिक जांच होगी, जो प्रथम दृष्टया यह आकलन करेगी कि क्या भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत पर्याप्त सबूत हैं. यह जांच लोकपाल के किसी एक सदस्य द्वारा की जाएगी, जो लोकपाल की पूर्ण पीठ के समक्ष इसे प्रस्तुत करेगा. परन्तु यह पूर्ण पीठ, विधिक पृष्टभूमि के कम से कम तीन कानूनी सदस्यों की होगी.
(3)     कोई भी मामला विधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों के बहुमत वाली पूर्ण पीठ के अनुमोदन के बगैर पंजीकृत नहीं किया जाएगा.
(4)     इस तरह के मामलों की जांच एक विशेष टीम द्वारा होगी, जिसका नेतृत्व कम से कम पुलिस अधीक्षक स्तर का अधिकारी करेगा.
(5)     अभियोजन आरम्भ करने अथवा न करने का निर्णय भी, लोकपाल की विधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों के बहुमत वाली पूर्ण पीठ के द्वारा ही लिया जाएगा.


भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का संरक्षण:

20. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का संरक्षण:
(1)     भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई व्यक्ति, यदि उसका व्यावसायिक या शारीरिक उत्पीड़न हो रहा हो या ऐसी धमकी दी गई हो तो   लोकपाल से सुरक्षा मांग सकता है,
(2)     इस तरह की कोई शिकायत मिलने पर लोकपाल निम्न कदम उठाएगा: 
क.     व्यावसायिक उत्पीड़न: उपयुक्त जांच के बाद अगर लोकपाल महसूस करता है कि इस अधिनियम के तहत आरोप लगाने के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज वाले को वास्तव में खतरा है तो वह यथाशीघ्र , लेकिन शिकायत मिलने के एक माह से अधिक नहीं, सक्षम अधिकारी को लोकपाल के निर्देशानुसार आवश्यक कदम उठाने का आदेश देगा. 
ख.     अगर भष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने वाला शिकायत करता है कि इस अधिनियम के तहत आरोप लगाने के बाद उसका व्यावसायिक उत्पीड़न हुआ है अथवा उसे पेशेगत रूप से नुकसान पहुंचाया गया है और जांच के बाद लोकपाल की यह राय बनती है कि सूचनादाता को वास्तव में नुकसान पहुंचाया गया है तो यथाशीघ्र, लेकिन शिकायत मिलने के एक माह से अधिक नहीं, युक्तियुक्त अधिकारी को लोकपाल के निर्देशानुसार आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश देगा. 
प्रावधान (क) के तहत लोकपाल धमकी देने वाले या नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी अधिकारी के विरुद्ध सुसंगत नियमों के तहत उचित दण्ड का आदेश निर्गत कर सकता है लेकिन प्रावधान (ख) के तहत निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
परन्तु प्रभावित सरकारी सेवक को अपना पक्ष रखने का एक अवसर उपलब्ध कराए बिना दंड़ का निर्धारण नहीं किया जा सकेगा. 
ग.      शारीरिक नुकसान की धमकी: लोकपाल, युक्तियुक्त जांच कराएगा और अगर उसे लगे कि वास्तव में धमकी दी गई है और यह धमकी इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करने के वजह से दी गई है, तो किसी भी अन्य कानून के बावजूद लोकपाल अधिकतम एक सप्ताह के अन्दर उपयुक्त अधिकारी के साथ पुलिस को उक्त व्यक्ति को उचित सुरक्षा उपलब्ध कराने के साथ, धमकी देने वालों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कर आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश देगा.      
अगर धमकी गम्भीर एवं सिन्नकट है तो लोकपाल तत्काल कार्रवाई करते हुए, कुछ घण्टों के अन्दर उक्त व्यक्ति को शारीरिक हमले से बचाने का उपाय करेगा. अगर शिकायतकर्ता अध्यक्ष या किसी सदस्य से मिलना चाहता है तो वह उनसे फोन या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात करने या व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए अधिकृत होगा.   
घ.      यदि कोई व्यक्ति शिकायत करता है कि इस अधिनियम के अन्तर्गत आरोप लगाने की वजह से उस पर शारीरिक हमला हुआ है और लोकपाल जांच के बाद इस बात से आश्वस्त होता है कि उस व्यक्ति पर इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करने की वजह से हमला हुआ है, तो किसी भी अन्य कानून के बावजूद, लोकपाल ,यथाशीघ्र लेकिन अधिक से अधिक 24 घण्टे के अन्दर सम्बन्धित अधिकारियों को - उक्त व्यक्ति को उचित सुरक्षा उपलब्ध कराने, हमलावरों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कराने के साथ साथ यह भी सुनिश्चित करने कि उस व्यक्ति के साथ दोबारा इस तरह की घटना न होके आदेश जारी करेगा. अगर शिकायतकर्ता अध्यक्ष या किसी सदस्य से मिलना चाहता है तो वह उनसे फोन या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात करने या व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए अधिकृत होगा.
(घ क) अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला कोई व्यक्ति आरोप लगाता है कि इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार अधिनियम के इस्तेमाल की वजह से उसके खिलाफ पुलिस या किसी प्राधिकारी ने मामला दर्ज कराया है या मामला दर्ज कराने का उपक्रम किया जा रहा है तो लोकपाल जांच के आधार पर उपयुक्त अधिकारियों को ऐसा मामला वापस लेने का आदेश निर्गत कर सकता है.
(घ ख) शारीरिक नुकसान की धमकी के मामले में या कोई ऐसा व्यक्ति जिस पर हमला हुआ है, देश में कहीं भी लोकपाल के कार्यालय में शिकायत कर सकता है और लोकपाल कार्यालय का यह कर्र्तव्य होगा कि वह उस शिकायत को तत्काल लोकपाल के उपयुक्त अधिकारी तक पहुंचा दे.  
(घ ग) लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले को सुरक्षा प्रदान करने का उत्तरदायित्व अपने अधीन किसी सतर्कता अधिकारी को सौंप सकता है और इस मामले में उस अधिकारी को यह अधिकार होगा कि वह उपयुक्त प्राधिकारी जिसमें पुलिस भी शामिल होगी, को उक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दे सकता है.    
(घ घ) अगर लोकपाल के पास शिकायत के बाद किसी व्यक्ति पर हमला किया जाता है तो लोकपाल के सम्बन्धित अधिकारी को कर्र्तव्य का निर्वहन न कर पाने या मिलीभगत या दोनों का दोषी ठहराया जाएगा, जब तक वह इसकी पुष्टि नहीं कर देता कि उसने अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.    
ङ.       अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला व्यक्ति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दण्डनीय किसी कृत्या का आरोप लगाता है तो लोकपाल प्रावधान (ग) के मामले के तहत आरोपों की जांच के लिए एक विशेष दल का गठन कर सकता है जो प्राथमिकता के आधार पर एक महीने के भीतर मामले की जांच पूरा करेगा और प्रावधान (घ) के मामलों के तहत निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
च.      अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई ऐसा आरोप लगाता है जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से अलग किसी अन्य कानून के तहत दण्डनीय है, तो प्रावधान (ग) के अधीन आने वाले मामले में लोकपाल उस ऐजेंसी, जिसके पास उस कानून को लागू करने का अधिकार है, को सूचनादाता के अरोपों की जांच के लिए विशेष दल बनाने और प्राथमिकता के आधार पर लोकपाल द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दे सकता है और प्रावधान (घ) के अधीन आने वाले मामले में लोकपाल निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
छ.     उपनियम (छ) के अधीन आने वाले मामलों में लोकपाल को उपयुक्त ऐजेंसी को इस तरह की जांच की निगरानी करने और अगर जरूरी हुआ तो लोकपाल के निर्देश के अनुरूप ऐजेंसी को खुद जांच करने का निर्देश जारी करने का अधिकार होगा. 
ज.     भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला, जिसे शारीरिक नुकसान पहुंचाने की धमकी दी गई है या उसे वास्तविक रूप से नुकसान पहुंचाया गया है, सीधे लोकपाल के अध्यक्ष से मिल सकता है और अध्यक्ष 24 घण्टे के भीतर उससे मिलेंगे और अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक उचित कर्रवाई करेंगे.
(3) अगर कोई शिकायतकर्ता अनुरोध करता है कि उसकी पहचान गुप्त रखी जाए तो लोकपाल ऐसा सुनिश्चित करेगा. लोकपाल इस बारे में विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करेगा कि इस तरह की शिकायतों को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा. 
(4) लोकपाल जुल्म की पुनरावृत्ति रोकने के लिए लोक प्राधिकारियों को नीतियों और प्रक्रिया में आवश्यक परिवर्तन का आदेश निर्गत करेगा.
(5) लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों से शिकायत की प्राप्ति और निपटान के लिए उपयुक्त नियम बनाएगा.

शिकायत निवारण प्रणाली

21. नागरिक घोषणापत्र:
(1)     प्रत्येक लोक प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रभाव में आने के अधिकतम एक साल के भीतर नागरिक अधिकार पत्र की तैयारी और कार्यान्यवन सुनिश्चित करेगा.
(2)     प्रत्येक नागरिक घोषणापत्र में उस लोक प्राधिकरण की कार्य की प्रतिबद्धता के बारे में, प्रत्येक कार्य प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करने के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों के बारे में और इसके लिए समय सीमा के बारे में स्पष्ट विवरण होगा.
(3)     प्रत्येक लोक प्राधिकरण एक प्राधिकारी नामित करेगा, जिसे लोक शिकायत निवारण अधिकारी कहा जाएगा, जिसके पास शिकायतकर्ता नागरिक घोषणापत्र के उल्लंघन की शिकायतें लेकर जाएंगे.
यह भी कि लोक प्राधिकरण ऐसी हर जगह पर, कम से कम एक लोक शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करेगा जहां उसका कार्यालय होगा.
लोक शिकायत निवारण अधिकारी विभाग का प्रमुख होगा या उससे एक दर्जे नीचे का अधिकारी, लेकिन अगर किसी जगह विभाग प्रमुख नहीं है तो वहां के सबसे वरिष्ठ अधिकारी को लोक शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त किया जाएगा. 
(4)     प्रत्येक लोक प्राधिकरण साल में कम से कम एक बार अपने मुख्य सतर्कता अधिकारी की मौजूदगी में सार्वजनिक बैठक कर नागरिक घोषणापत्र की समीक्षा कर और उसमें संशोधन करेगा. 
(5)     लोकपाल किसी लोक प्राधिकरण को अपने नागरिक घोषणापत्र में परिवर्तन का आदेश निर्गत कर सकेगा और लोक प्राधिकरण को आदेश मिलने के एक सप्ताह के भीतर उक्त परिवर्तन करना होगा.    
प्रावधानों के मुताबिक इस तरह के परिवर्तन को लोकपाल की कम से कम तीन सदस्यीय पीठ द्वारा अनुमोदित कराना होगा.
इस तरह के परिवर्तन में नागरिक घोषणापत्र की मौजूदा समय सीमा बढ़नी या वर्णित कार्यों की संख्या घटनी नहीं चाहिए. 

21क. शिकायत प्राप्ति व निपटान:

(1) किसी लोक प्राधिकरण का मुख्य सतर्कता अधिकारी उस लोक प्राधिकरण से सम्बन्धित शिकायतों को प्राप्त  करने एवं निपटाने के लिए उतनी संख्या में सतर्कता अधिकारी घोषित करेगा जितना उचित लगे, जो कि अपीलीय शिकायत अधिकारी के तौर पर जाने जाएंगे। 
(2) यदि कोई नागरिक जन शिकायत निवारण अधिकारी के समक्ष शिकायत करने के एक माह के अन्दर शिकायत का सन्तुष्टिपूर्ण निवारण प्राप्त करने में विफल रहता है तो, अपीलीय शिकायत अधिकारी के समक्ष शिकायत कर सकता है।
परन्तु शिकायत की गम्भीरता एवं तात्कालिकता पर विचार करते हुए अपीलीय शिकायत अधिकारी को यदि महसूस होता है कि, ऐसा करना जरूरी है तो, वह ऐसी शिकायत को जल्द भी स्वीकार करने का निर्णय कर सकता है।
(3) यदि शिकायत उस लोक प्राधिकरण के नागरिक चार्टर में विर्णत मुद्दे से सम्बन्धित नहीं है तो, अपीलीय शिकायत अधिकारी, शिकायत प्राप्त करने के एक माह के अन्दर, या तो शिकायत को नामंजूर करने या आदेश में विर्णत तरीके से उस समय के अन्दर शिकायत के समाधान के लिए लोक प्राधिकरण को निर्देश देते हुए एक आदेश जारी करेगा.
     परन्तु यह भी कि शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर दिये बगैर कोई शिकायत नामंजूर नहीं की जाएगी.
(4) अपीलीय शिकायत अधिकारी को प्रेषित शिकायत को सतर्कता दृष्टिकोण वाली शिकायत समझा जाएगा, यदि: 

. शिकायतकर्ता, सिटिज़न चार्टर में वर्णित मुद्दों के लिए, जन शिकायत निवारण अधिकारी से सन्तुष्टिपूर्ण निवारण पाने में विफल रहा है, अथवा, और
. सिटीज़न चार्टर में विर्णत मुद्दों से अतिरिक्त के लिए, यदि इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (3) में  निर्धारित अपीलीय शिकायत अधिकारी के आदेश का उल्लंघन होता है।

(5) इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (4) में वर्णित, हरेक मामले को निम्न तरीके से समाधान किया जाएगा:

. सुनवाई का वाजिब अवसर देने के बाद, अपीलीय शिकायत अधिकारी शिकायकर्ता की शिकायत को निर्धारित समय में सन्तुष्टिपूर्ण निवारण में विफलता के लिए जिम्मेदारी तय करते हुए आदेश जारी कर सकता है और उस लोक प्राधिकरण के आरेखण एवं संवितरण अधिकारी को आदेश में विर्णत तरीके से उस अधिकारी के वेतन से जुर्माने की रकम वसूलने का निर्देश दे सकता है, अपीलीय शिकायत अधिकारी के निर्देश अनुसार, वह जुर्माना सिटीज़न चार्टर में निदिर्ष्ट समय सीमा पूरा होने के दिन से या उस शिकायत के निवारण के लिए इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (3) के अन्तर्गत जारी आदेश में निदिर्ष्ट समय सीमा के दिन से गणना करके प्रतिदिन विलम्ब के लिए रुपये 250 से कम नहीं होना चाहिए।
.कथित अधिकारियों के वेतन से वसूली गई रकमों को शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति के लिए आरेखण एवं संवितरण अधिकारी को निर्देश देना।

(6) इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (5) की उपधारा(क) के अन्तर्गत जारी किए जाने वाले आदेश में उल्लेखित अधिकारियों को स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि उन्होंने नेकनीयती से कार्य किया है और उनका कोई भ्रष्ट उद्देश्य नहीं है। यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं तो, अपीलीय शिकायत अधिकारी कथित अधिकारियों के खिलाफ केन्द्रीय नागरिक सेवा विनियम के अन्तर्गत जुर्माना लगाने की सिफारिश करेगा.   

21ख. वार्षिक अखण्डता लेखा परीक्षण : समय-समय पर लोकपाल की ओर से तय दिशानिर्देशों के अनुसार लोकपाल हरेक विभाग की वार्षिक अखण्डता लेखा परीक्षण करेगा।


बड़े या छोटे दण्ड का अधिरोपण 

21ग. कदाचार के आरोप की शिकायतें सतर्कता अधिकारी के पास की जाएंगी. इन शिकायतों पर वही जांच भी करेगा.
21घ. अनुच्छेद 21क के अन्तर्गत सतर्कता दृष्टिकोण वाली कदाचार एवं जन शिकायतों के आरोप निम्न तरीके से हल किये जाएंगे:

(1)     सतर्कता अधिकारी ऐसे हरेक मामले में उसे प्राप्त करने के तीन माह के अन्दर जांच करेगा और मुख्य सतर्कता अधिकारी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
(2)     रिपोर्ट प्राप्त करने के एक पखवाड़े के अन्दर, मुख्य सतर्कता अधिकारी उप मुख्य सतर्कता अधिकारियों का तीन सदस्यीय पीठ गठित करेगा, इस पीठ में उपधारा (1) के अन्दर जांच करने वाला अधिकारी शामिल नहीं होगा.
(3)     यह पीठ जांच करने वाले सतर्कता अधिकारी, शिकायतकर्ता एवं आरोपी अधिकारी के साथ सारांश सुनवाई करेगी.
(4)     यह पीठ दैनिक आधार पर सुनवाई करेगी और आरोपी सरकारी सेवकों पर एक या अधिक छोटे और बड़े दण्ड लगाते हुए आदेश जारी करेगी.
परन्तु ये आदेश पीठ गठित करने के एक माह के अन्दर जारी किये जाएंगे।
साथ ही यह भी कि ऐसे आदेश समुचित निनियोक्ता प्राधिकरण को सिफारिश के स्वरूप में होंगे।
(5)     पीठ के आदेश के खिलाफ मुख्य सतर्कता अधिकारी के समक्ष अपील की जा सकेगी, जोकि आरोपी, शिकायतकर्ता एवं पूछताछ करने वाले सतर्कता अधिकारी को सुनवाई का वाजिब अवसर देने के बाद, अधिकतम एक माह के अन्दर अपना आदेश जारी करेगा.


लोकपाल में कर्मचारी और स्टाफ एवं अधिकारी

22.
मुख्य सतर्कता अधिकारी:
(1)     प्रत्येक लोक प्राधिकरण में एक मुख्य सतर्कता अधिकारी होगा जिसका चयन और नियुक्ति लोकपाल द्वारा की जाएगी.
(2)     वह सम्बन्धित लोक प्राधिकरण से नहीं होगा.
(3)      वह एक ईमानदार निष्ठावान और भ्रष्टाचार के खिलाफ सक्रिय कार्रवाई करने में योग्य व्यक्ति होगा. 
(4)      वह किसी भी लोक प्राधिकरण के खिलाफ शिकायत स्वीकार करने के लिए उतरादायी होगा और शिकायत प्राप्त होने के अधिकतम दो दिन के भीतर सम्बन्धित लोक अधिकारी के पास उसे स्थानान्तरित करेगा. 
(5)     लोकपाल द्वारा समय-समय पर दिए गए दायित्वों के निर्वाह के लिए वह उत्तरदायी होगा, जिनमेंलोकपाल द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए गए तरीके से, शिकायतों का निपटान भी शामिल है.
परन्तु जिन शिकायतों के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत जांच आवश्यक है, उन्हें लोकपाल के जांच सम्भाग को स्थानान्तरित किया जाएगा. 
साथ ही यह भी कि, संयुक्त सचिव या उससे ऊपर स्तर के अधिकारियों के खिलाफ, काम पूरा न होने की शिकायतों के अतिरिक्त परिवादों को मुख्य सतर्कता अधिकारी नहीं देखेगा और उन्हें लोकपाल को स्थानान्तरित किया जाएगा, जो कि किन्ही तीन अन्य प्राधिकारणों के मुख्य सतर्कता अधिकारियों की एक कमेटी गठित करेगा जो इन शिकायतों की जांच करेगी.

(6)     अगर किसी नागरिक को जन शिकायत अधिकारी से इस अधिनियम की धारा 21 के तहत सन्तोषजनक निवारण नहीं मिलता है तो लोकपाल की ओर से मुख्य सतर्कता अधिकारी सभी शिकायतों को प्राप्त करेगा और उसका निपटान करेगा.
(7)     लोकपाल के निर्णय के अनुसार समय-समय पर कुछ सतर्कता अधिकारियों की नियुक्ति मुख्य सतर्कता अधिकारी के अधीन की जाएगी. 
(8)     सतर्कता अधिकारियों एवं मुख्य सतर्कता अधिकारी को ऐसे मामलों में लोकपाल द्वारा केन्द्रीय नागरिक सेवा (आचरण) नियम के अन्तर्गत और समय समय पर लोकपाल द्वारा तय किये जाने वाले नियमों के मुताबिक पूछताछ करने एवं जुर्माना लगाने का अधिकार होगा। 

23. लोकपाल के कर्मचारी इत्यादि
(1)     इस अधिनियम के अन्तर्गत ऐसे अधिकारी एवं कर्मचारी होंगे जो इस अधिनियम के अन्तर्गत लोकपाल को अपने कार्य को पूरा करने में मदद करने के लिए निर्धारित किये जा सकते हैं।
(2)     अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संख्या एवं श्रेणी का निर्णय लोकपाल द्वारा किया जाएगा।
(3)     उप-अनुच्छेद (1) में वर्णित अधिकरियों, एवं कर्मचारियों की श्रेणियां, भर्ती एवं सेवा की शर्तें वे होंगी जो कि लोकपाल द्वारा निर्धारित की जा सकती हैं, इनमें विशेष शर्तें या विशेष वेतन शामिल हैं जो कि निडर होकर अपना कर्र्तव्य निभाने के लिए सक्षम बनाने के लिए जरूरी हो सकती हैं।
परन्तु यह कि जिस भी अधिकारी की निष्ठा सन्देहास्पद हो, उसे लोकपाल में नियुक्त करने के बारे में विचार नहीं किया जाएगा।
इसके अतिरिक्त यह भी कि सभी अधिकारी एवं कर्मचारी, जो कि लोकपाल में प्रतिनियुक्ति पर या किसी तरह से काम करते हैं, इस धारा के अन्तर्गत निर्धारित एकसमान नियमों एवं शर्तों के योग्य होंगे।  
(4)     उप-अनुच्छेद (1) के प्रावधानों के प्रति पूर्वाग्रह के बगैर, इस अधिनियम के अन्तर्गत जांच करने के उद्देश्य से लोकपाल निम्न की सेवाएं ले सकता है -
क.     केन्द्र सरकार के किसी अधिकारी या जांच एजेंसी; या
ख.     किसी अन्य सरकार की पूर्व सहमति से उनका कोई अधिकारी या जांच एजेंसी; या
ग.      निजी व्यक्ति सहित, कोई व्यक्ति, या कोई अन्य एजेंसी।

(5)     इस उप-अनुच्छेद में जिक्र किये गये अधिकारी एवं कर्मचारी लोकपाल के प्रशासनिक एवं अनुशासनिक नियन्त्रण में होंगे।
(6)     लोकपाल को अपने अधिकारी चुनने की शक्ति होगी। लोकपाल सरकारी एजेंसियों से तय समय के लिए प्रतिनियुक्ति पर अधिकारी प्राप्त कर सकता है या अन्य सरकारी एजेंसियों से स्थायी आधार पर अधिकारी प्राप्त कर सकता है या स्थायी आधार पर नियत समय के लिए बाहर से व्यक्ति नियुक्त कर सकता है।
(7)     कर्मचारी एवं अधिकारी ऐसे वेतनमान एवं भत्ते के हकदार होंगे, जो कि केन्द्र सरकार के साधारण वेतनमान से अलग एवं ज्यादा हो सकता है, जो कि समय समय पर लोकपाल द्वारा प्रधानमन्त्री के साथ विचार-विमर्श से तय किया जाएगा, ताकि लोकपाल में काम करने के लिए ईमानदार एवं सक्षम लोग आकर्षित हों।
(8)     लोकपाल अपने सम्पूर्ण बजटीय बाधाओं के अन्तर्गत, अपने काम के बोझ के अनुसार एवं कार्यरत स्टाफों के सेवा की शर्तों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न स्तरों पर अपने कर्मचारी कम करने या बढ़ाने के लिए सक्षम होगा।

24. निरस्त व बचाव करना-
(1) केन्द्रीय सर्तकता आयोग अधिनियम निष्प्रभावी हो जाएगा.
(2) निरस्त होने के बावजूद, इस अधिनियम के अन्तर्गत हुए कोई कार्य या चीज इस अधिनियम के अन्तर्गत की हुई समझी जाएंगी और इस अधिनियम के समतुल्य प्रावधानों के अन्तर्गत जारी और पूरी की जा सकती है।
(3) केन्द्रीय सतर्कता आयोग के समक्ष लंबित सभी पूछताछ एवं जांच और अन्य अनुशासनात्मक कार्यवाही और जिनका निपटारा नहीं हुआ है, वे लोकपाल को हस्तान्तरित की जाएंगी और जारी रहेंगी यदि वे इस अधिनियम के अंतर्गत उनके समक्ष शुरू होती हैं।
(4) किसी अधिनियम में कुछ व्यवस्था भी होने के बावजूद, केन्द्रीय सतर्कता आयोग के सचिव एवं अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों का पद समाप्त किया जाता है और इसके बाद वे लोकपाल के सचिव एवं अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के तौर पर नियुक्त किये जाते हैं। उस सचिव, अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते एवं सेवा की अन्य नियम व शर्तें, जब तक कि उन्हें बदला न जाए, वहीं होंगी जो इस अधिनियम में शुरू करने के ठीक पहले वे हकदार रहे हैं। 
(5) केन्द्र सरकार के सभी विभागों, केन्द्र सरकार के मन्त्रालयों, किसी केन्द्रीय अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित निगम, सरकारी कम्पनियां, केन्द्र सरकार की या उनके द्वारा नियन्त्रित सोसायटी एवं स्थानीय प्राधिकरण के नियन्त्रण के अन्तर्गत सभी सतर्कता प्रशासन, सभी उद्देश्यों के लिए अपने अधिकारियों, सम्पत्तियों एवं दायित्त्वों सहित लोकपाल को हस्तान्तरित हो जाएंगे। 
(6) उप-अनुच्छेद (5) में विर्णत एजेंसियों की सतर्कता शाखा में कार्यरत अधिकारी लोकपाल में स्थानान्तरित किये जाने वाले तारीख से पांच साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर समझे जाएंगे। जबकि, लोकपाल उनमें से किसी को भी व कभी भी उनकी वापसी कर सकता है।
(7) उप-अनुच्छेद (5) के अन्तर्गत लोकपाल को स्थानान्तरित हुए अधिकारियों के विभाग का स्थानान्तरित अधिकारियों के प्रशासन एवं कार्य पर कोई भी नियन्त्रण बन्द हो जाएगा।
(8) लोकपाल अधिकारियों को एक के बाद बदलते रहेंगे और और हरेक विभाग का सतर्कता शाखा इस तरह बनाएंगे कि उसी विभाग का कोई अधिकारी उसी विभाग के सतर्कता कार्य के लिए नियुक्त न हो। 
(9) वह व्यक्ति लोकपाल के साथ नियुक्त नहीं होगा जिन पर विचार करते समय उनके खिलाफ कोई भी सतर्कता पूछताछ या आपराधिक मामला लंबित या विचाराधीन हो।

25. लोकपाल की अन्वेषण शाखा-
(1)     लोकपाल में एक अन्वेषण शाखा होगी. 
(2)     भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के धारा 17 के प्रावधानों के बावजूद लोकपाल के स्तर निर्धारित किए गए अन्वेषण शाखा के ऐसे अधिकारी इस अधिनियम के अधीन शिकायतों के जांच के सिलसिले में पूरे देश में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते हैं. उन्हें वे सभी अधिकार, कर्र्तव्य, विशेषाधिकार और दायित्व हासिल होंगे जो किसी घटना की जांच के लिए दिल्ली विशेष  पुलिस स्थापना के सदस्यों को मिले हुए हैं.
(3)     दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना को का वह भाग जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत सम्बन्धित अपराधों के अन्वेषण और अभियोजन के लिए प्रतिबद्ध होता है, अपने कर्मचारियों, साधनों और देनदारियों समेत सभी प्रयोजनों  के लिए लोकपाल को हस्तान्तरित कर दिया जाएगा. 
(4)     उप-धारा (3) के तहत स्थानान्तरित किया गया दिल्ली विशेष पुलिस विभाग, लोकपाल के सतर्कता विभाग का हिस्सा होगा. 
(5)     केन्द्रीय सरकार का उस स्थानान्तरित प्रभाग व उनके कर्मचारियों पर कोई अधिकार नहीं होगा. 
(6)     स्थानान्तरित कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य नियम व शर्तें उप धारा (3) के तहत वहीं होंगी, जिनके वे इस अधिनियम के प्रारम्भ होने से तुरन्त पहले योग्य थे. 
(7)     वे सभी मामले जो कि दिल्ली विशेष पुलिस प्रभाग के पास थे, वे सभी उप धारा (3) के तहत लोकपाल को स्थानान्तरित हो जाएंगे. 
(8)     किसी मामले की जांच के पूरा होने के बाद, उस मामले को अन्वेषण शाखा लोकपाल की उपयुक्त पीठ के सामने प्रस्तुत करेगी ताकि यह निर्णय लिया जा सके कि उस पर अभियोजन करने की इजाजत है या नहीं.   

25क. अभियोजन शाखा-  लोकपाल की एक अभियोजन शाखा होगी. किसी मामले में जांच पूरी होने के बाद, जांच शाखा इसे अभियोजन शाखा को अग्रसित कर देगी, जिस पर अभियोजन करने या नहीं करने का निर्णय अभियोजन शाखा लेगी.
परन्तु यह कि लोकपाल द्वारा चिन्हित विशिष्ट श्रेणी के मामलों में लोकपाल की पीठ द्वारा यह निर्णय लिया जाएगा कि इसके अभियोजन की अनुमति देनी है या इंकार करना है.
यह भी कि जांच शाखा से मामला मिलने के दो सप्ताह के भीतर अभियोजन शाखा अभियोजन की अनुमति देने या नहीं देने का निर्णय लेगी, ऐसा नहीं होने की स्थिति में मान लिया जाएगा कि अभियोजन शाखा अभियोजन शुरू करने जा रही है.

26. लोकपाल के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत:

(1) लोकपाल के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ की गई शिकायत की जांच, इस उपखंड के प्रावधानों के अनुसार , अलग से की जाएगी.
(2) ऐसी शिकायत अपराध के रूप में आरोपित, अथवा भ्रष्टाचार अधिनियम के अनुसार या दुराचार या बेईमानी के मामले की हो सकती है.
(3) लोकपाल में जैसे ही शिकायत दर्ज की जाएगी, शिकायत की सामग्री सहित लोकपाल की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाएगा,
परन्तु शिकायतकर्ता अगर चाहेगा तो उसकी पहचान नहीं बताई जाएगी. 
(4) हर शिकायत की जांच, उसके मिलने के एक माह के भीतर पूरी कर ली जाएगी. 
(5) किसी अधिकारी पर लगे आरोपों की जांच भारतीय दण्ड संहिता की धारा 107, 166, 167, 177, 182, 191, 199, 200, 201, 204, 217, 218, 219, 463, 464, 468, 469, 470, 471, 474 के तहत की जाएगी.  
(6) अगर जांच के दौरान ऐसा लगा कि लगाए गए आरोप सही हैं तो उस अधिकारी से सारे अधिकार और दायित्व छीन लिए जाएंगे और उसे निलम्बित कर दिया जाएगा. 
(7) यदि पूछताछ या जांच पूरी होने के बाद, उस व्यक्ति पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 के अन्तर्गत अभियोग चलाने का निर्णय लिया जाता है या वह किसी दुर्व्यवहार अथवा गलत तरीके से पूछताछ या जांच करने का दोषी पाया जाता है तो, वह व्यक्ति आगे से लोकपाल के साथ काम नहीं करेगा। यदि वह व्यक्ति लोकपाल में नौकरी पर है तो लोकपाल उस व्यक्ति को नौकरी से निकाल देगा, या यदि वह प्रतिनियुक्ति पर है तो, उसे नौकरी से निकालने की सिफारिश के साथ वापस भेज दिया जाएगा।
परन्तु इस अनुच्छेद के अन्तर्गत आरोपी व्यक्ति का पक्ष सुनने का वाजिब अवसर दिये बगैर कोई आदेश जारी नहीं किया जाएगा।
परन्तु इस अनुच्छेद के अन्तर्गत जांच पूरी करने के लिए 15 दिनों के अन्दर वह आदेश जारी कर दिया जाएगा।
(8) अपने स्टाफ एवं कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतों के मामले के सुनवाई तीन सदस्यीय न्यायपीठ करेगी। जबकि, मुख्य सतर्कता अधिकारी या उससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों के लिए, लोकपाल की पूर्ण पीठ द्वारा सुनवाई की जाएगी।
(9) लोकपाल यह सुनिश्चित करने के लिए सारे कदम उठायेगा ताकि उसके अपने स्टाफ एवं कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतों पर सभी पूछताछ एवं जांच अति पारदर्शी एवं ईमानदारी पूर्ण तरीके से की जाए।
                                                        
27. बचाव:

(1)  किसी अध्यक्ष या सदस्य या किसी अधिकारी के खिलाफ, कर्मचारी, एजेंसी, या व्यक्ति जो अपनी ड्यूटी करते समय अपना दायित्व नेकनीयती से निभाता है तो उसके खिलाफ इस निदिर्ष्ट धारा 14( 4) के तहत गलत आरोप लगाने पर कोई मुकदमा, अभियोग या अन्य कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी.  
विविध

28. सार्वजनिक अधिकारी अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा प्रस्तुत करें: 
(1)   अनुच्छेद 2(12) (क) से (ग) में विर्णत के अलावा, प्रत्येक लोक सेवक इस अधिनियम के शुरू होने के तीन माह के अन्दर और उसके बाद हर साल 30 जून के पहले, लोकपाल द्वारा निर्धारित स्वरूप में, अपने लोक प्राधिकरण के प्रमुख को, अपनी एवं जो अपने परिवार के सदस्यों की सम्पत्तियों एवं जिम्मेदारियों का ब्यौरा प्रस्तुत करेगा। अनुच्छेद 2(12) (क) से (ग) में विर्णत लोकसेवक, लोकपाल को उपरोक्त समय अवधि में, लोकपाल द्वारा निर्धारित स्वरूप में रिटर्न प्रस्तुत करेगा, जिसमें उसकी आय के स्रोत भी शामिल होंगे।
(2)   हरेक लोक प्राधिकरण का प्रमुख यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे सभी ब्यौरे उस वर्ष के 31 अगस्त तक वेबसाइट पर डाल दिये जाएं।
(3)   यदि उस लोक प्राधिकरण के प्रमुख को उप-अनुच्छेद (1) में निर्धारित समय में किसी लोक सेवक से ऐसा ब्यौरा प्राप्त नहीं होता है तो, उस लोक प्राधिकरण का प्रमुख सम्बन्धित लोक सेवक को ऐसा तत्काल करने का निर्देश देगा। यदि अगले एक माह में, सम्बन्धित लोक सेवक ऐसा ब्यौरा प्रस्तुत नहीं करता है तो, प्रमुख उस लोक सेवक द्वारा वह ब्यौरा प्रस्तुत करने तक उसका वेतन एवं भत्ता रोक देगा.
स्पष्टीकरण - इस अनुच्छेद में ``लोक सेवक का परिवार´´ का मतलब पत्नी एवं उसके बच्चे और लोक सेवक के माता पिता, जो उन पर आश्रित हों।
(4)   लोकपाल उस लोक सेवक के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 176 के अन्तर्गत अभियोग शुरू कर सकता है।

28क. सम्पत्तियों को भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त किया गया समझा जाएगा: 
(1)  किसी लोक सेवक या उसके परिवार के किसी सदस्य के स्वामित्व में ऐसी कोई चल या अचल सम्पत्ति पायी जाती है, जिसे उस लोक सेवक द्वारा इस अनुच्छेद के अन्तर्गत घोषित नहीं की गई थी जो कि इस अनुच्छेद के अन्तर्गत पिछली रिटर्न दाखिल करने से पहले हासिल की गई हैं, तो उसे भ्रष्ट तरीके से अर्जित किया गया समझा जाएगा।
(2) किसी लोक सेवक या उसके परिवार के किसी सदस्य के कब्जे में ऐसी कोई चल या अचल सम्पत्ति पायी जाती है, जो कि इस अनुच्छेद के अन्तर्गत उस लोक सेवक द्वारा घोषित नहीं की गई थी, वह उस लोक सेवक के स्वामित्व में माना जाएगा एवं वह लोक सेवक द्वारा भ्रष्ट तरीके के माध्यम से हासिल किया हुआ समझा जाएगा, उसे अन्यथा साबित करने का दायित्व लोक सेवक का होगा।
(3) किसी लोक सेवक को 15 दिनों के अन्दर इस बात का स्पष्टीकरण देने का एक अवसर दिया जाएगा, कि – 
क.     इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (1) के अन्तर्गत सम्पत्ति होने की स्थिति में, क्या उसने किसी भी पिछले सालों में उस सम्पत्ति को घोषित किया था। 
ख.     इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (2) के अन्तर्गत सम्पत्ति होने की स्थिति में, स्पष्टीकरण देने के लिए कि उसे लोक सेवक के स्वामित्व में क्यों नहीं समझा जाना चाहिए।

(4) यदि लोक सेवक इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (3) के अन्तर्गत सन्तुष्टिपूर्ण जवाब प्रदान करने में विफल रहता है तो, लोकपाल ऐसी सभी सम्पत्तियों को जब्त कर लेगा। 
(5) इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (3) के अन्तर्गत जिसके लिए नोटिस जारी की जाती है, उन सम्पत्तियों का हस्तान्तरण नोटिस जारी करने की तिथि के बाद अमान्य समझी जाएंगी।
(6) लोकपाल, उचित कार्रवाई के लिए ऐसी जानकारी आय कर विभाग को सूचित करेगा.
(7) लोकपाल के उस आदेश के खिलाफ अपील उपयुक्त अधिकार क्षेत्र के उच्च न्यायालय में किया जाएगा, जो अपील दाखिल करने के तीन माह के अन्दर मामले का निर्णय करेगा-
परन्तु, उप-अनुच्छेद (4) के अन्तर्गत लोकपाल के आदेश के 30 दिन बीत जाने के बाद किसी अपील पर विचार नहीं किया जाएगा.
(8) इस अनुच्छेद के अन्तर्गत जब्त समस्त सम्पत्तियों को नीलामी में सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को दी जाएगी। उसकी आधी आय को लोकपाल द्वारा भारत के समेकित कोष में जमा किया जाएगा। शेष रकम को लोकपाल द्वारा अपने खुद के प्रशासन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
परन्तु यदि किसी मामले में अपील दाखिल की गई है तो अपील के निपटारे तक कोई नीलामी नहीं होगी.

28ख (1) संसद के किसी चुनाव के पूरा होने के तीन माह के बाद, लोकपाल उम्मीदवार द्वारा भारत के चुनाव आयोग के पास प्रस्तुत सम्पत्ति के ब्यौरे की तुलना आयकर विभाग के उपलब्ध उसके आय के स्रोत से करेगा। जिन मामलों ज्ञात स्रोतों से ज्यादा सम्पत्ति पायी जाती है, वह उपयुक्त कार्यवाही शुरू करेगा।
(2) किसी संसद सदस्य के खिलाफ यह आरोप लगता है कि उसने संसद में मतदान करने या संसद में सवाल उठाने या अन्य किसी विषय सहित संसद के किसी व्यवस्था में रिश्वत ली है तो, संसद सदस्य जिस सदन का सदस्य है तदानुसार, लोकसभा स्पीकर या राज्य सभा अध्यक्ष के पास शिकायत की जा सकती है. ऐसी शिकायतों पर निम्न तरीके से सुनवाई होगी:
क.     शिकायत प्राप्त होने के एक माह के अन्दर उसे आचारनीति समिति के पास आगे भेजा जाएगा।
ख.     आचारनीति समिति एक माह के अन्दर निर्णय करेगी कि उस पर क्या किया जाना है।

29 प्रतिनिधियों को कार्यभार सौंपने की शक्ति:  
(1)     लोकपाल अपने मातहतों को शक्तियां और कार्य सौंपने का अधिकारी होगा. 
(2)     ऐसे अधिकारियों की ओर से अपनी शक्तियों का प्रयोग कर जो कार्य किए जाएगा, उसे लोकपाल द्वारा किया माना जाएगा.
परन्तु नीचे लिखे गए कार्य पीठ द्वारा ही पूरे किए जाएंगे और इन्हें किसी और पर प्रत्यायोजित नहीं किया जाएगा. 
क.     किसी मामले में अभियोजन शुरू करने का आदेश देना. 
ख.     सीसीएस संचालित नियमों के अनुसार किसी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त करना. 
ग.      अनुभाग 10 के अन्तर्गत लोकपाल के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत पर आदेश जारी करना. 
घ.      संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ मामलों की शिकायतों पर आदेश जारी करना.

30. समय सीमा: 
(1)     अनुभाग 9 के उपभाग (1) के अंर्तगत इस अधिनियम में प्रारम्भिक जांच शिकायत प्राप्त होने के एक महीने में पूरी हो जानी चाहिए.
परन्तु अगर जांच निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी नहीं होती है, तो जांच अधिकारी को इसका कारण बताने के लिए ज़िम्मेदार माना जाएगा. 
(2)      किसी आरोप की जांच शिकायत मिलने से छह महीने और किसी भी परिस्थिति में एक वर्ष के भीतर पूरी की जाएगी . 
(3)     लोकपाल की ओर से दायर अभियोजन पर सुनवाई एक वर्ष के भीतर पूरी हो जानी चाहिए. स्थगन अति विशिष्ट परिस्थितियों में ही दिए जाने चाहिए.
30क. पारदर्शिता और सूचना के अधिकार के लिए प्रार्थना पत्र: 
(1)     लोकपाल हर सूचना को वेबसाइट पर मुहैया कराने का हर सम्भव प्रयास करेगा. 
(2)     किसी मामले की जांच पूरी हो जाने के बाद, उससे जुड़े सभी दस्तावेज आम जनता के लिए उपलब्ध होंगे. लोकपाल को यह दस्तावेज वेबसाइट पर डालने का यथासम्भव प्रयास करना होगा.
परन्तु, जानकारी देते समय इस तथ्य का ध्यान रखा जाए कि जिस व्यक्ति ने अपनी पहचान छुपाने की बात कही है और कोई ऐसी सूचना जिससे देश की आन्तरिक और बाह्य सुरक्षा को खतरा हो, को प्रकट नहीं किया जाएगा.

31. विशिष्ट शिकायतों पर जुर्माना: 
(1)     इस अधिनियम में उल्लेखित होने के बावजूद, यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अन्तर्गत कोई ऐसी शिकायत करता है, जिसमें कोई आधार या साक्ष्य का अभाव हो और वह किसी प्राधिकारों को तंग करने के लिए लोकपाल को की गई हो, तो, लोकपाल शिकायतकर्ता पर जो उचित समझे वह जुर्माना लगा सकता है, लेकिन किसी एक मामले में कुल जुर्माना रुपये एक लाख से ज्यादा नहीं होगा।
परन्तु सुनवाई का वाजिब अवसर दिये बगैर कोई जुर्माना नहीं लगाया जा सकता।
इसके साथ ही यह भी कि सिर्फ इसलिए कि इस अधिनियम के अन्तर्गत जांच के बाद मामला साबित नहीं हो पाया हो, तो इस अनुच्छेद के उद्देश्य के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ ऐसा नहीं किया जाएगा.
(2)     वह जुर्माना भूमि राजस्व अधिनियम के अन्तर्गत बकाया अनुसार वसूले जा सकने योग्य होगा.
(3)      इस अधिनियम के अन्तर्गत एक बार जो शिकायत या आरोप कर दी गई हो उसे वापस लेने की अनुमति नहीं होगी.

31क. निवारक उपाय: 
(1)     लोकपाल, नियमित समय अन्तराल पर, अपने अधिकार क्षेत्र में पड़ने वाले सभी लोक प्राधिकरण के कार्य पद्धति का या तो स्वयं अथवा किसी अन्य के माध्यम से अध्ययन करेगा और सम्बन्धित लोक प्राधिकरण से विचार-विमर्श करके, ऐसे निर्देश जारी करेगा जिसे वह भविष्य में भ्रष्टाचार की घटनाओं को रोकने के लिए उचित समझे।
(2)     लोकपाल इस अधिनियम के बारे जागरूकता उत्पन्न करने एवं आम जनता को भ्रष्टाचार रोकने में शामिल करने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

31ख. पुरस्योजना: 
(1)     लोकपाल को सरकार के भीतर और बाहर भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने वाले व्यक्तियों को पुरस्कृत कर, आम जनता को प्रोत्साहित करना चाहिए. 
(2)     लोकपाल को इस तरह की योजना लागू करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए जिसमें शिकायतकर्ता को आर्थिक तौर पर भी पुरस्कृत किया जा सके. लेकिन, यह पुरस्कार राशि भ्रष्टाचार से होने वाले नुकसान की 10 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए.

32. कानून बनाने का अधिकार: 

(1)     सरकार अधिकारिक गजट में अधिसूचना के द्वारा इस अधिनियम के प्रावधानों को प्रभाव में लाने के उद्देश्य से नियम बनाएगी।
परन्तु ऐसे नियम केवल लोकपाल से विचार-विमर्श करके ही बनाये जाएंगे।
(2)     खासकर, एवं पूर्वगामी प्रावधानों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर, ऐसे नियम निम्न प्रदान कर सकते हैं :
क.     लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों को देय भत्ते, पेंशन और अन्य सेवा शर्तों के संबंध में;
ख.     अनुभाग 11 के उपभाग (2) के खण्ड (एच) के अन्तर्गत लोकपाल के पास एक सिविल अदालत की शक्तियां प्राप्त होनीं चाहिए. 
       (2क) लोकपाल को सुचारू रूप से चलाने के लिए लोकपाल को अपने नियम बनाने की छूट होनी चाहिए. 
क.     लोकपाल के स्टाफ और कर्मचारियों आदि के वेतन, भत्ते, भर्ती और अन्य सेवाओं के बारे में
ख.     लोकपाल में मामले दर्ज कराने और कार्यवाही शुरू करने की प्रक्रिया. 
ग.      इसके साथ ही कोई अन्य विषय, जिसमें इस अधिनियम के अंर्तगत कानून बनाना जरूरी हो.
(3)     इस अधिनियम के अन्तर्गत बने किसी नियम को पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ बनाया जा सकता है और जब ऐसा नियम बनाया जाता है तो संसद के दोनों सदनो के समक्ष वक्तव्य में नियम बनाने की वजह को स्पष्ट किया जाएगा. 
(4)     लोकपाल इस अधिनियम में विभिन्न प्रावधानों में वर्णित समय सीमा का कड़ाई से पालन करेगा. इसे हासिल करने के लिए, लोकपाल हरेक स्तर के पदाधिकारी के लिए मानक तय करेगा और कार्य के बोझ के अनुसार अतिरिक्त संख्या में पदाधिकारियों एवं बजट की जरूरत का आकलन करेगा.

32
क. यह लोकपाल का कर्र्तव्य होगा कि अपने स्टाफ को नियमित अन्तराल में प्रशिक्षित करे और उनके कौशल में सुधार के लिए अन्य सभी कदम उठाये और लोगों के साथ व्यवहार करने के सोच में बदलाव लाए।
लोकपाल को हर स्पर होने वाले कार्य के मानदण्डों को सूचीबद्ध करना होगा. इसके बाद कार्य की मात्रा को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त लोगों की भर्ती की जरूरत और बजट का हिसाब लगाना होगा. 

33. कठिनाइयों को दूर करना :- इस अधिनियम में कुछ भी होने के बावजूद, राष्ट्रपति, लोकपाल के साथ विचार-विमर्श करके या लोकपाल के निवेदन पर निम्न आदेश, ऐसे प्रावधान कर सकता है-
(1)     इस अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी संचालन में लाने के लिए
(2)     केन्द्रीय सतर्कता आयोग के समक्ष लंबित पूछताछ एवं जांच को लोकपाल द्वारा जारी रखने के लिए।

34 . कानून बनाने की शक्ति :- संस्था के अबाध क्रियाकलाप एवं इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए लोकपाल को अपने विनियम बनाने का अधिकार होगा।

35. यह अधिनियम अन्य सभी कानूनों के प्रावधानों से सर्वोपरि होगा।